डॉ. राजश्री सिंह
पिछले साल कर्नाटक चुनाव डयुटी में -
एक अनुभव -
बहुत दिनों से सोच रही थी एक बात ! कुछ लिख दूं नहीं तो घुटन होगी ! पहले कविता में कोशिश की पर बात नहीं बनी ! सारा अनुभव चार लाइनों में , मुश्किल है !
ये कहानी नहीं हक़ीक़त है मेरे देश की ! मेरे देश में औरतों की इज़्ज़त होती है पर शायद तीज त्योहार पर ही वरना साजोसामान और इज़्ज़त की वस्तु से शायद अधिक आज भी कोई ज़्यादा हैसियत है नहीं ! कुछ जगह पर तो वो भी नहीं !
देखा और महसूस किया है मैंने ! दरअसल इलेक्शन ड्यूटी में जाने का एक फ़ायदा तो ज़रूर है , मुझे मेरे देश के लोगों से मिलने समझने का अवसर मिल जाता है ! बेशक घर की याद आती है पर उस वक़्त वहाँ के लोग अपने लगने लगते हैं ! परिवार के लोग अक्सर मुझे इमोशनल फूल कहते हैं ! मुझे जाने क्यूँ सब अच्छे लगते हैं ! अक्सर लोगों को देखकर मैं कल्पना कर लेती हूँ कि अगर मैं वो होती तो..... बता नहीं सकती किसी और के अन्दर घुसकर , उसकी ज़िन्दगी महसूस करना कितना रोमांचित कर जाता है मुझे ! सबके सुख दुख ऐसे ही महसूस कर लेती हूँ !
चाहे बिहार हो या कर्नाटक , समस्या एक जैसी सी हैं ! अब मैं जहाँ गई मेरी लाइजन ऑफ़िसर ने पुछा कि हाइपर सेंसिटिव बूथ पर चलेंगी मैम ? मैंने बोला क्यूँ नहीं पर हाइपर सेंसिटिविटी क्यूँ है ये बूथ ! जवाब मिला - स्लम एरिया है ,राउडी रहते हैं ! अच्छा चलो चलते हैं मैंने बोला !
टूटी फूटी छोटी छोटी गलियों से निकलकर वहाँ तक पहुँचना , इतनी बदबू फैली हुई थी , साँस घुट गया !हर जगह कचरा फैला हुआ था ! घर में कचरा बाहर कचरा !खैर ये बात समझने में कई वर्ष और निकल जायेंगे कि सफ़ाई की महत्ता क्या है !
मेरे पूरे परिवार की ये आदत है , अक्सर गाड़ी में चाकलेट्स , टाफीज और बिस्किट्स ज़रूर रखते हैं ! चौराहे से गुज़रते हुए ग़रीब बच्चों को दे के बहुत अच्छा लगता है ,एक अजीब सा सुकून मिलता है उनकी छोटी सी मुस्कान देखकर !
यहाँ भी बच्चों को देखा और टॉफियां दीं , अच्छा लगा ! छोटी छोटी दो टॉफियां पाकर बच्चे इतने ख़ुश थे किजैसे एक - एक किलो मिठाई मिल गयी ! यहाँ तक कि बड़ी महिलाओं ने व पुरूषों ने भी हाथ फैला दिए ! अब दिल तो उनके पास भी है !
बच्चों को जब मैं ये टाफियां बाँट रही थी , कई बच्चों ने ऐसे झपटकर लेने की कोशिश की कि हाथ से छूट गईं ! लपक कर एक साथ कई बच्चे झपटे , मैंने बोला - बेटा रूको , ऐसे नहीं करते पर ग़रीबी कहाँ किसी को शउर , एटटीकेट्स दिखाने का मौक़ा देती है ! ढेर सारे बच्चे देखे ! मैले कुचैले कपड़ों में , नहाने का तो मतलब ही नहीं , मुँह भी शायद हफ़्तों से धोया नहीं! मैंने पूछा पानी नहीं आता ! आता है पर शायद इनके ज़ेहन में ये ख़्याल आता ही नहीं ! पर कुछ एकाध बच्चे सबसे अलग थे जो सलीक़ा जानते थे ! अभिवादन करना भी आता था उनको ! शायद ये भी गुदड़ी का लाल कहलायें आगे जाकर , एक उम्मीद की किरण देखी मैंने !हालांकि सभी जगह प्राथमिक शिक्षा मुफ़्त दी जाती है पर बच्चे माँ बाप की ज़िम्मेदारी ढोते हैं ।ऐसा नहीं कि हम सबने अपने बहन भाई को गोद में न उठाया हो प्यार से पर यहाँ मजबूरी अधिक और प्यार कम था ! एक का हाथ थामे दूसरे को गोद में उठाये ! गोद से उतार के कमर सीधी की एक पल तो माँ चिल्लाई - ए तंगी , नीर कुडो ! पानी का मटका पानी भर के खुद से भी ज़्यादा वज़न का हो गया ! गिरते पड़ते आधा पानी ही पहुँचा घर तक !
माँ बच्चे पे बच्चे पैदा कर रही है , बाप रोटी कमाने की जद्दोजहद में रात को आता है ! शारीरिक और मानसिक पीड़ा भुलाने की कोशिश में अधकचरी दारू पीकर घर आता है ! घर आकर इतना शोर मचाना कि बच्चे जागकर रोने लगें !मांकी हालत तो आप सोच के भी सिहर जाएँगे ,पति को संभाले या उसके दिए तोहफ़ों को , एक पेट में और बाक़ी एक लाईन में सोते अधनंगे बच्चे ! परिवार नियोजन का तो कांसेप्ट ही नहीं कहीं दूर दूर तक !और साथ में पीटने का अधिकार तो शादी के साथ ही मिल गया था ! सुबह मुँह को क्या छुपाना , पास पड़ोस में भी तो यही होता है गाली गलौज , मार पिटाई ! ऐसा शास्त्रों में भी लिखा है -ढोल ,गँवार ,शूद्र ......
और जहाँ स्त्री को पीटना हो तो , शास्त्रों में भी लिखा है , शास्त्रोक्त सही है ,हमारे पुर्खे भी बताते थे !
ऐसे ही बिहार में देखा , ग़रीबी देखी घर में ! एक एक दस बाइ दस के कमरे से दस दस बच्चे हर साइज़ के ! क़ुदरत ने तो कोई कमी नहीं छोड़ी ! जहाँ मैं गई थी , इतनी हरियाली थी ! लेकिन अब समझ आया लोग फ़सल नहीं , बच्चों की खेती करते हैं !
और घर की बच्चियाँ , पहले माँ - बाप की गृहस्थी संभालते - संभालते पति के घर पहुँच जाती है , न बचपन देखा , न पढ़ाई की , पर दुनियादारी की समझ आ गई कामचलाऊ ! शायद शादी में ही मिलें हों नये कपड़े ! बाक़ी तो जहाँ माँ मेड सर्वेंट है, वो मेमसाहेब ही देती हैं ।
पिछले साल कर्नाटक चुनाव डयुटी में -
एक अनुभव -
बहुत दिनों से सोच रही थी एक बात ! कुछ लिख दूं नहीं तो घुटन होगी ! पहले कविता में कोशिश की पर बात नहीं बनी ! सारा अनुभव चार लाइनों में , मुश्किल है !
ये कहानी नहीं हक़ीक़त है मेरे देश की ! मेरे देश में औरतों की इज़्ज़त होती है पर शायद तीज त्योहार पर ही वरना साजोसामान और इज़्ज़त की वस्तु से शायद अधिक आज भी कोई ज़्यादा हैसियत है नहीं ! कुछ जगह पर तो वो भी नहीं !
देखा और महसूस किया है मैंने ! दरअसल इलेक्शन ड्यूटी में जाने का एक फ़ायदा तो ज़रूर है , मुझे मेरे देश के लोगों से मिलने समझने का अवसर मिल जाता है ! बेशक घर की याद आती है पर उस वक़्त वहाँ के लोग अपने लगने लगते हैं ! परिवार के लोग अक्सर मुझे इमोशनल फूल कहते हैं ! मुझे जाने क्यूँ सब अच्छे लगते हैं ! अक्सर लोगों को देखकर मैं कल्पना कर लेती हूँ कि अगर मैं वो होती तो..... बता नहीं सकती किसी और के अन्दर घुसकर , उसकी ज़िन्दगी महसूस करना कितना रोमांचित कर जाता है मुझे ! सबके सुख दुख ऐसे ही महसूस कर लेती हूँ !
चाहे बिहार हो या कर्नाटक , समस्या एक जैसी सी हैं ! अब मैं जहाँ गई मेरी लाइजन ऑफ़िसर ने पुछा कि हाइपर सेंसिटिव बूथ पर चलेंगी मैम ? मैंने बोला क्यूँ नहीं पर हाइपर सेंसिटिविटी क्यूँ है ये बूथ ! जवाब मिला - स्लम एरिया है ,राउडी रहते हैं ! अच्छा चलो चलते हैं मैंने बोला !
टूटी फूटी छोटी छोटी गलियों से निकलकर वहाँ तक पहुँचना , इतनी बदबू फैली हुई थी , साँस घुट गया !हर जगह कचरा फैला हुआ था ! घर में कचरा बाहर कचरा !खैर ये बात समझने में कई वर्ष और निकल जायेंगे कि सफ़ाई की महत्ता क्या है !
मेरे पूरे परिवार की ये आदत है , अक्सर गाड़ी में चाकलेट्स , टाफीज और बिस्किट्स ज़रूर रखते हैं ! चौराहे से गुज़रते हुए ग़रीब बच्चों को दे के बहुत अच्छा लगता है ,एक अजीब सा सुकून मिलता है उनकी छोटी सी मुस्कान देखकर !
यहाँ भी बच्चों को देखा और टॉफियां दीं , अच्छा लगा ! छोटी छोटी दो टॉफियां पाकर बच्चे इतने ख़ुश थे किजैसे एक - एक किलो मिठाई मिल गयी ! यहाँ तक कि बड़ी महिलाओं ने व पुरूषों ने भी हाथ फैला दिए ! अब दिल तो उनके पास भी है !
बच्चों को जब मैं ये टाफियां बाँट रही थी , कई बच्चों ने ऐसे झपटकर लेने की कोशिश की कि हाथ से छूट गईं ! लपक कर एक साथ कई बच्चे झपटे , मैंने बोला - बेटा रूको , ऐसे नहीं करते पर ग़रीबी कहाँ किसी को शउर , एटटीकेट्स दिखाने का मौक़ा देती है ! ढेर सारे बच्चे देखे ! मैले कुचैले कपड़ों में , नहाने का तो मतलब ही नहीं , मुँह भी शायद हफ़्तों से धोया नहीं! मैंने पूछा पानी नहीं आता ! आता है पर शायद इनके ज़ेहन में ये ख़्याल आता ही नहीं ! पर कुछ एकाध बच्चे सबसे अलग थे जो सलीक़ा जानते थे ! अभिवादन करना भी आता था उनको ! शायद ये भी गुदड़ी का लाल कहलायें आगे जाकर , एक उम्मीद की किरण देखी मैंने !हालांकि सभी जगह प्राथमिक शिक्षा मुफ़्त दी जाती है पर बच्चे माँ बाप की ज़िम्मेदारी ढोते हैं ।ऐसा नहीं कि हम सबने अपने बहन भाई को गोद में न उठाया हो प्यार से पर यहाँ मजबूरी अधिक और प्यार कम था ! एक का हाथ थामे दूसरे को गोद में उठाये ! गोद से उतार के कमर सीधी की एक पल तो माँ चिल्लाई - ए तंगी , नीर कुडो ! पानी का मटका पानी भर के खुद से भी ज़्यादा वज़न का हो गया ! गिरते पड़ते आधा पानी ही पहुँचा घर तक !
माँ बच्चे पे बच्चे पैदा कर रही है , बाप रोटी कमाने की जद्दोजहद में रात को आता है ! शारीरिक और मानसिक पीड़ा भुलाने की कोशिश में अधकचरी दारू पीकर घर आता है ! घर आकर इतना शोर मचाना कि बच्चे जागकर रोने लगें !मांकी हालत तो आप सोच के भी सिहर जाएँगे ,पति को संभाले या उसके दिए तोहफ़ों को , एक पेट में और बाक़ी एक लाईन में सोते अधनंगे बच्चे ! परिवार नियोजन का तो कांसेप्ट ही नहीं कहीं दूर दूर तक !और साथ में पीटने का अधिकार तो शादी के साथ ही मिल गया था ! सुबह मुँह को क्या छुपाना , पास पड़ोस में भी तो यही होता है गाली गलौज , मार पिटाई ! ऐसा शास्त्रों में भी लिखा है -ढोल ,गँवार ,शूद्र ......
और जहाँ स्त्री को पीटना हो तो , शास्त्रों में भी लिखा है , शास्त्रोक्त सही है ,हमारे पुर्खे भी बताते थे !
ऐसे ही बिहार में देखा , ग़रीबी देखी घर में ! एक एक दस बाइ दस के कमरे से दस दस बच्चे हर साइज़ के ! क़ुदरत ने तो कोई कमी नहीं छोड़ी ! जहाँ मैं गई थी , इतनी हरियाली थी ! लेकिन अब समझ आया लोग फ़सल नहीं , बच्चों की खेती करते हैं !
और घर की बच्चियाँ , पहले माँ - बाप की गृहस्थी संभालते - संभालते पति के घर पहुँच जाती है , न बचपन देखा , न पढ़ाई की , पर दुनियादारी की समझ आ गई कामचलाऊ ! शायद शादी में ही मिलें हों नये कपड़े ! बाक़ी तो जहाँ माँ मेड सर्वेंट है, वो मेमसाहेब ही देती हैं ।
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