‘कोरोना संक्रमण और जागरूकता '
“कोरोना वायरस ने भारत को ही नहीं, अपितु समूचे विश्व को प्रभावित किया हैं ।सभी देश अपने-अपने स्तर पर कोरोना से लड़ने, लोगों की सुरक्षा करने के लिए, तरह-तरह के उपाय सुझाव एवं प्रयास कर रहे हैं। किंतु दुर्भाग्य हैं कि भारत जैसें इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में आज भी नस्लीय जातिगत और महिला विरोधी विचार ,व्यवहार पर कोई फर्क देखने को नहीं मिला हैं । वैसे तो वर्तमान समय में संक्रमण के दौर से हम सब गुजर रहे हैं सभी का घर में रहना ही सबके लिए हितकर हैं । किंतु जरूरी नहीं कि सबके लिए हो । इसकी कुछ हद तक सरकारें भी जिम्मेदार हैं। जैसें कि ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षिकाओं द्वारा ऑनलाइन पढ़ाए जाने पर गांव के लोगों द्वारा, बच्चों द्वारा अभद्र टिप्पणी एवं वीडियो भेजने की शिकायतें लगातार दर्ज हो रही हैं जो की महिलाओं के हित में नहीं हैं ।और महिलाएं सुरक्षित भी नहीं हैं
उनके प्राइवेट मोबाइल नंबर का सार्वजनिक होना ग्रामीण स्तर पर तार्किक नहीं हो सकता किसी भी दृष्टिकोण से । सरकारें तो आती– जाती रहती हैं किन्तु अध्यापकों के स्थानांतरण साल दर साल हो पाना मुमकिन नहीं है और 20% से ज्यादा ग्रामीण परिवेश में यह ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया सुचारू रूप से चल नहीं पा रही हैं । जिसे 2 जून की रोटी मुश्किल से मिलता हो वह एंड्रायड फोन कैसे रख पाएगा ... सोचनीय विषय हैं अपितु सरकार अच्छा होता यदि सरकारी, अर्द्ध सरकारी, नगर निगम, नगर निकाय के तृतीय एवम् चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों द्वारा सामान्य जागरूकता रैली के प्रचार– प्रसार एवं सैनिटाइजर, मास्क जैसें जरूरत के सामान के साथ आम– जनमानस को शिक्षित करने का प्रयास करती, साथ ही मिडेमिल की व्यवस्था भी सरकार करा सकती जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की मदद भी हो पाती सुचारू ढंग से एवम् लोगों को शिक्षित किया जा सकता हैं इससे कुछ निर्देशों के साथ सरकारी कर्मचारी लगातार कार्यरत भी रहते ।
महिलाओं के शोषण पर भी रोक लगाई जा सकती , उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ होने से रोका जा सकता हैं एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को बच्चों को सजग एवम् जागरूक भी किया जा सकता हैं शहरी क्षेत्रों में इन कार्यों के साथ स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से लोगों के बीच सामांतर दूरी बनाते हुए इसका प्रचार-प्रसार किया जा सकता हैं यदि मधुशाला में भीड़ बढ़ाई जा सकती हैं, मजदूरों को बुलाया जा सकता हैं तो इस तरह का प्रचार–प्रसार भी सरकार कर सकती हैं पुलिस प्रशासन को मात्र सहयोग करना होगा किंतु उन्हें भी आराम मिलेगा । उनका भी थोड़ा सा मनोरंजन भी जरूर होगा । जो स्वयं सेवी संस्थाएं अभी तक राशन वितरण कर रही थी वही संस्थाएं यदि पोस्टर/ बैनर के साथ कवि एवं अन्य कलाकार के माध्यम से लोगों को प्रेरित करें तो संभवतः सामाजिक दूरी, कोराेना से बचाव की परिभाषा को सामान्य जनमानस के बीच परिभाषित कर पाना आसान हो । लोगों को अफवाहों से भी दूर रखा जा सकें।
साथ ही सामान्य जनजीवन के बीच का तनाव, अवसाद,एकाकीपन,मशीनी इन्सान बने रहने से भी मुक्ति मिलेगी । लोगों की भावनात्मक जरूरतें भी पूरी होगी ।साथ ही महिलाओं के साथ हो रहे घरेलू हिंसा में भी कमी आएगी ।,रूढ़िवादी मानसिकता के लोग भी थोड़े जागरूक हो सकेंगे ।, पुरुषवादी मानसिकता भी स्वतंत्र विचरण कर सकेंगी , साथ ही बुजुर्गों को भी रामायण, महाभारत देख लेने के बाद पुनः विचार– विमर्श करने में सहायक एवम् राम नाम में रमे रहने की एक नई ऊर्जा मिल सकेगी । भारत के इतने बड़े लोकतांत्रिक समाज में सर्वाधिक पीड़ित महिलाएं एवं बच्चे ही हुए हैं। जो कि पूर्ववत हैं ,इसमें कुछ भी नया नहीं हैं बहुत सारे लेख, विचार, कानून, संस्थाए आदि आजादी से पहले से लेकर अब तक कार्य कर रही हैं इस विषय पर किंतु शोषण में निरंतर बढ़ोतरी ही देखने को मिली हैं बस तरीके बदल रहे हैं जैसे कि वर्तमान समय में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया। सरकार यदि इस संकट के समय जागरूकता पर प्रकाश डालें तो ज्यादा बेहतर होगा न कि ग्रामीण परिवेश में अभिभावकों को यह सोचने के लिए विवश करें कि वह बच्चों को ऑनलाइन शिक्षण देने के लिए अब फोन कहां से,कैसे लाए...। इस प्रक्रिया द्वारा गांवों में चोरी,छिनैती, मार–पीट आदि भी बढ़ रहें हैं अतः सरकार मई,जून के इस माह में जागरूकता अभियान चलाने,लोगों को प्रशिक्षित करने पर बल दे,इससे सरकारी कर्मचारी कार्यरत भी रहेगें और महिलाए सुरक्षित भी ।तथा कोरोना से लड़ने में यह अभियान कारगर सिद्ध होगा ।।"
लेखिका का स्वतंत्र विचार
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
“कोरोना वायरस ने भारत को ही नहीं, अपितु समूचे विश्व को प्रभावित किया हैं ।सभी देश अपने-अपने स्तर पर कोरोना से लड़ने, लोगों की सुरक्षा करने के लिए, तरह-तरह के उपाय सुझाव एवं प्रयास कर रहे हैं। किंतु दुर्भाग्य हैं कि भारत जैसें इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में आज भी नस्लीय जातिगत और महिला विरोधी विचार ,व्यवहार पर कोई फर्क देखने को नहीं मिला हैं । वैसे तो वर्तमान समय में संक्रमण के दौर से हम सब गुजर रहे हैं सभी का घर में रहना ही सबके लिए हितकर हैं । किंतु जरूरी नहीं कि सबके लिए हो । इसकी कुछ हद तक सरकारें भी जिम्मेदार हैं। जैसें कि ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षिकाओं द्वारा ऑनलाइन पढ़ाए जाने पर गांव के लोगों द्वारा, बच्चों द्वारा अभद्र टिप्पणी एवं वीडियो भेजने की शिकायतें लगातार दर्ज हो रही हैं जो की महिलाओं के हित में नहीं हैं ।और महिलाएं सुरक्षित भी नहीं हैं
उनके प्राइवेट मोबाइल नंबर का सार्वजनिक होना ग्रामीण स्तर पर तार्किक नहीं हो सकता किसी भी दृष्टिकोण से । सरकारें तो आती– जाती रहती हैं किन्तु अध्यापकों के स्थानांतरण साल दर साल हो पाना मुमकिन नहीं है और 20% से ज्यादा ग्रामीण परिवेश में यह ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया सुचारू रूप से चल नहीं पा रही हैं । जिसे 2 जून की रोटी मुश्किल से मिलता हो वह एंड्रायड फोन कैसे रख पाएगा ... सोचनीय विषय हैं अपितु सरकार अच्छा होता यदि सरकारी, अर्द्ध सरकारी, नगर निगम, नगर निकाय के तृतीय एवम् चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों द्वारा सामान्य जागरूकता रैली के प्रचार– प्रसार एवं सैनिटाइजर, मास्क जैसें जरूरत के सामान के साथ आम– जनमानस को शिक्षित करने का प्रयास करती, साथ ही मिडेमिल की व्यवस्था भी सरकार करा सकती जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की मदद भी हो पाती सुचारू ढंग से एवम् लोगों को शिक्षित किया जा सकता हैं इससे कुछ निर्देशों के साथ सरकारी कर्मचारी लगातार कार्यरत भी रहते ।
महिलाओं के शोषण पर भी रोक लगाई जा सकती , उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ होने से रोका जा सकता हैं एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को बच्चों को सजग एवम् जागरूक भी किया जा सकता हैं शहरी क्षेत्रों में इन कार्यों के साथ स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से लोगों के बीच सामांतर दूरी बनाते हुए इसका प्रचार-प्रसार किया जा सकता हैं यदि मधुशाला में भीड़ बढ़ाई जा सकती हैं, मजदूरों को बुलाया जा सकता हैं तो इस तरह का प्रचार–प्रसार भी सरकार कर सकती हैं पुलिस प्रशासन को मात्र सहयोग करना होगा किंतु उन्हें भी आराम मिलेगा । उनका भी थोड़ा सा मनोरंजन भी जरूर होगा । जो स्वयं सेवी संस्थाएं अभी तक राशन वितरण कर रही थी वही संस्थाएं यदि पोस्टर/ बैनर के साथ कवि एवं अन्य कलाकार के माध्यम से लोगों को प्रेरित करें तो संभवतः सामाजिक दूरी, कोराेना से बचाव की परिभाषा को सामान्य जनमानस के बीच परिभाषित कर पाना आसान हो । लोगों को अफवाहों से भी दूर रखा जा सकें।
साथ ही सामान्य जनजीवन के बीच का तनाव, अवसाद,एकाकीपन,मशीनी इन्सान बने रहने से भी मुक्ति मिलेगी । लोगों की भावनात्मक जरूरतें भी पूरी होगी ।साथ ही महिलाओं के साथ हो रहे घरेलू हिंसा में भी कमी आएगी ।,रूढ़िवादी मानसिकता के लोग भी थोड़े जागरूक हो सकेंगे ।, पुरुषवादी मानसिकता भी स्वतंत्र विचरण कर सकेंगी , साथ ही बुजुर्गों को भी रामायण, महाभारत देख लेने के बाद पुनः विचार– विमर्श करने में सहायक एवम् राम नाम में रमे रहने की एक नई ऊर्जा मिल सकेगी । भारत के इतने बड़े लोकतांत्रिक समाज में सर्वाधिक पीड़ित महिलाएं एवं बच्चे ही हुए हैं। जो कि पूर्ववत हैं ,इसमें कुछ भी नया नहीं हैं बहुत सारे लेख, विचार, कानून, संस्थाए आदि आजादी से पहले से लेकर अब तक कार्य कर रही हैं इस विषय पर किंतु शोषण में निरंतर बढ़ोतरी ही देखने को मिली हैं बस तरीके बदल रहे हैं जैसे कि वर्तमान समय में बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित ऑनलाइन शिक्षण प्रक्रिया। सरकार यदि इस संकट के समय जागरूकता पर प्रकाश डालें तो ज्यादा बेहतर होगा न कि ग्रामीण परिवेश में अभिभावकों को यह सोचने के लिए विवश करें कि वह बच्चों को ऑनलाइन शिक्षण देने के लिए अब फोन कहां से,कैसे लाए...। इस प्रक्रिया द्वारा गांवों में चोरी,छिनैती, मार–पीट आदि भी बढ़ रहें हैं अतः सरकार मई,जून के इस माह में जागरूकता अभियान चलाने,लोगों को प्रशिक्षित करने पर बल दे,इससे सरकारी कर्मचारी कार्यरत भी रहेगें और महिलाए सुरक्षित भी ।तथा कोरोना से लड़ने में यह अभियान कारगर सिद्ध होगा ।।"
लेखिका का स्वतंत्र विचार
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
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