व्याप्त कोरोना महामारी के परिणाम दुष्परिणाम व बचाव का आईना प्रदर्शित करती नरसिंहपुरया अंदाज में कवि की रचना।
*आशा*
जान से बड़ा नहीं कोई घाटा
आज हटा दें सब बही खाता
यह कोरोना बज्रपात है
चौपट उदम तो एक चांटा ।
पालन कर्ता जगत पिता पर
क्यो विश्वास नहीं आता
बनि रहें हड्डी जब तन में
मांस तो फिर आता जाता
कुछ भी होवे घर पर रहिए
फूलों के संग भी तो काँटा।।
सारे मुल्क़ों में है सन्नाटा
कोरोना ने भेद को पाटा
एक दूजे का दर्द बाँट लें
माता धरती हम सब भ्राता
गोविंद रजक(गलीज़)नरसिंहपुरिया
*आशा*
जान से बड़ा नहीं कोई घाटा
आज हटा दें सब बही खाता
यह कोरोना बज्रपात है
चौपट उदम तो एक चांटा ।
पालन कर्ता जगत पिता पर
क्यो विश्वास नहीं आता
बनि रहें हड्डी जब तन में
मांस तो फिर आता जाता
कुछ भी होवे घर पर रहिए
फूलों के संग भी तो काँटा।।
सारे मुल्क़ों में है सन्नाटा
कोरोना ने भेद को पाटा
एक दूजे का दर्द बाँट लें
माता धरती हम सब भ्राता
गोविंद रजक(गलीज़)नरसिंहपुरिया
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