होने की खोज....
◆◆◆◆◆◆◆
कुछ गुलाबी
सतरंगी सपने हैं
जो चहका देते हैं
शिथिल पड़े
उदास मन को
जो जाने क्यों
क्या ढूंढता रहता है
अपने होने को
या कि फिर
होने के होने को...
हर बार उत्तर
निकट होकर भी
फिसल सा जाता है ..
फिर एक नई सुबह
एक नई शुरुआत
उसी जिजीविषा में
व्याकुल अंतर की परतें खोलता
खोलकर फिर फिर समेटता
इसी उधेड़बुन में
देह, उम्र बूढ़ा जाती
पर आत्मा
और,और
जवां हो जाती..
उस होने की खोज में
आब-ए-रवाँ हो जाती....
डॉ. अनिता जैन "विपुला"
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कुछ गुलाबी
सतरंगी सपने हैं
जो चहका देते हैं
शिथिल पड़े
उदास मन को
जो जाने क्यों
क्या ढूंढता रहता है
अपने होने को
या कि फिर
होने के होने को...
हर बार उत्तर
निकट होकर भी
फिसल सा जाता है ..
फिर एक नई सुबह
एक नई शुरुआत
उसी जिजीविषा में
व्याकुल अंतर की परतें खोलता
खोलकर फिर फिर समेटता
इसी उधेड़बुन में
देह, उम्र बूढ़ा जाती
पर आत्मा
और,और
जवां हो जाती..
उस होने की खोज में
आब-ए-रवाँ हो जाती....
डॉ. अनिता जैन "विपुला"

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