कुछ तो घट जाता है - रेशमा त्रिपाठी ।

----कुछ कुछ तो वाट जाता है ----

“पथ कितना भी हो मुश्किल
संघर्षों के राह पर ही चलना ।
शूल कितने भी चुभे हों मगर
तुम फूलों को लेकर ही निकलना ।।

दर्द हो या तनहाई का लम्स हो
मगर महफ़िल में रौनक जमाते रहना ।
अश्रु का समंदर तुम बना बना लेना
मगर बहते किसी के अश्रु हो, तो पोछते ही रहना ।।

मदद करना हर किसी का
पर किसी को शर्मिंदा नहीं करना ।
जरूरत अगर किसी को हो, तो मरहम लगा देना
मगर नासूर हो किसी का जख्म तो,घाव मत करना ।।

थक कर हार जाय कोई , तो सहारा दे देना
राह भटक जाय, तो राह दिखा देना ।
उम्मीद हो किसी का, तो उम्मीद मत खोना
ज़ख्म दुश्मन का भी हो गहरा, तो सहला जरूर देना ।।

जख्मी इन्सान अपने को खोजता हैं
उसके जख्म पर अपना पन लगा देना ।
क्योंकि!
अपनापन जब अपनों में बट जाता हैं
होता तो कुछ नहीं, पर कुछ तो घट जाता हैं ।।"


लेखिका -
रेशमा त्रिपाठी 
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ।

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