आजकल लगभग प्रत्येक व्यक्ति यही पूछ रहा है कि अगर भगवान का अस्तित्व है तो वो आज के इस विपदाकाल में लोगों की रक्षा हेतू क्यों नहीं आ रहे ? क्या उनका यह कथन ''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥'' मिथ्या सिद्ध होगा । मैं उनको कहना चाहती हूँ कि इस श्लोक के अर्थ को अच्छे से समझ लें । उन्होंने धर्म की एवं साधू सन्तों की रक्षा हेतु अवतरित होने का वादा किया है । पहले तो हम यह जान ले कि धर्म और अधर्म क्या है । निरीह मूक प्राणियों पर अत्याचार ,इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ किसने किया ? हम लोगों ने ही ना तो अधर्मी कौन है, पहचानिए स्वयं को । प्रभु साधू जन एवं सन्त जन की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध है । साधू और सन्त का अभिप्राय केवल किसी विशेष वेशभूषा धारी से न लेकर स्वभाव से ले और स्वयं से पूछे क्या हम साधू हैं । भगवान आज भी आएंगे उनकी और से मैं वचन देती हूँ लेकिन आप लोग आश्वस्त करें कि आप इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे । किसी भी निरीह प्राणी चाहे वह मनुष्य हो अथवा पशु पक्षी । पशु पक्षियों का तो छोड़िए जो आजकल के वृद्धाश्रम बढ़ते जा रहे हैं हमारे उन संस्कारो पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं जो हमें इंसान कहलवाने का गौरव प्रदान करते हैं । और यह प्रकॄति अब देखिए न मात्र एक मास की अवधि में कितनी स्वच्छ हो गई है जो स्पष्ट रूप से इंगित कर रही है कि इसके दोषी कोई और नहीं केवल हम है । ये हमारी पवित्र नदियाँ जिन्हें हम माता कहकर पूजते हैं इनको भी हमने कितना मलिन कर दिया । सरकार कितने समय से इन्हें साफ करने का प्रयत्न करती रही लेकिन विफल रही लेकिन आज देखिये बिना किसी प्रयत्न के ये स्वतः ही निर्मल हो गई है तो इनके दोषी भी तो हम ही हुए ना ! अगर हम सभी दृढ़ता के साथ आज प्रण लेते हैं कि हम प्रकृति के साथ एवं किसी भी प्राणी के साथ कोई भी अनाचार नहीं करेंगे तो आपको विश्वास दिलाती हूँ कि इस कोरोना से प्रभु शीघ्र ही निजात दिला देंगे । क्या आप सभी प्रण लेते हैं ।अगर नहीं लेते तो आज के बाद कभी मत पूछना प्रभु क्यों नहीं आ रहे । वो आये हुए हैं अभी प्रकृति की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है । आप साधू बन, सज्जन बन पुकारिये आपकी भी रक्षा करेंगे ।
सुमन जैन ''सत्यगीता''
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥'' मिथ्या सिद्ध होगा । मैं उनको कहना चाहती हूँ कि इस श्लोक के अर्थ को अच्छे से समझ लें । उन्होंने धर्म की एवं साधू सन्तों की रक्षा हेतु अवतरित होने का वादा किया है । पहले तो हम यह जान ले कि धर्म और अधर्म क्या है । निरीह मूक प्राणियों पर अत्याचार ,इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ किसने किया ? हम लोगों ने ही ना तो अधर्मी कौन है, पहचानिए स्वयं को । प्रभु साधू जन एवं सन्त जन की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध है । साधू और सन्त का अभिप्राय केवल किसी विशेष वेशभूषा धारी से न लेकर स्वभाव से ले और स्वयं से पूछे क्या हम साधू हैं । भगवान आज भी आएंगे उनकी और से मैं वचन देती हूँ लेकिन आप लोग आश्वस्त करें कि आप इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे । किसी भी निरीह प्राणी चाहे वह मनुष्य हो अथवा पशु पक्षी । पशु पक्षियों का तो छोड़िए जो आजकल के वृद्धाश्रम बढ़ते जा रहे हैं हमारे उन संस्कारो पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं जो हमें इंसान कहलवाने का गौरव प्रदान करते हैं । और यह प्रकॄति अब देखिए न मात्र एक मास की अवधि में कितनी स्वच्छ हो गई है जो स्पष्ट रूप से इंगित कर रही है कि इसके दोषी कोई और नहीं केवल हम है । ये हमारी पवित्र नदियाँ जिन्हें हम माता कहकर पूजते हैं इनको भी हमने कितना मलिन कर दिया । सरकार कितने समय से इन्हें साफ करने का प्रयत्न करती रही लेकिन विफल रही लेकिन आज देखिये बिना किसी प्रयत्न के ये स्वतः ही निर्मल हो गई है तो इनके दोषी भी तो हम ही हुए ना ! अगर हम सभी दृढ़ता के साथ आज प्रण लेते हैं कि हम प्रकृति के साथ एवं किसी भी प्राणी के साथ कोई भी अनाचार नहीं करेंगे तो आपको विश्वास दिलाती हूँ कि इस कोरोना से प्रभु शीघ्र ही निजात दिला देंगे । क्या आप सभी प्रण लेते हैं ।अगर नहीं लेते तो आज के बाद कभी मत पूछना प्रभु क्यों नहीं आ रहे । वो आये हुए हैं अभी प्रकृति की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है । आप साधू बन, सज्जन बन पुकारिये आपकी भी रक्षा करेंगे ।
सुमन जैन ''सत्यगीता''
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