" कोरोना "
लाॅकडाऊन और बदली जीवन शैली"
कोरोना जैसी गंभीर महामारी से लड़ने के लिए,
भारत में पहले 21 दिन के लाॅकडाऊन और फिर लॉकडाऊन की अवधि को बढ़ाया जाना, निश्चित तौर पर हम सबके सुरक्षित जीवन को मद्देनजर रखते हुए लिया गया एक बड़ा फैसला है।
पर जब हम निजी तौर पर इस लाॅकडाऊन और इससे उपजी समस्याओं को देखते हैं, तो मन बहुत दुखी हो जाता है।
कुछ लोग जो अपने परिवार से दूर है उनके मन की पीड़ा शायद शब्दों में वयां न हो, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं जो अपनी बचत से घर चला रहें हैं और साथ ही साथ इस चिंता में भी जी रहें हैं कि पैसे खत्म हो गये तो क्या करेंगे।
वहीं हमारे मजदूर भाई जो रोज कमा कर अपना घर चलाते हैं, उनके समक्ष जीवन यापन की समस्या खड़ी है।
खैर हमारी सरकार और बहुत सारे लोगों ने इस समय मदद के लिए हर संभव प्रयास किया है और आगे भी करेंगे।
पर सबाल यहां यह उठता है कि कोरोना ने हम सबकी जिंदगी पूरी तरह बदलकर रख दी।
लोग घरों में रुक गये,
बहुत सारा काम अपनी जगह पर रुक गया,
कुछ लोग इस महामारी को प्रकृति का प्रकोप बता रहे हैं,उनका मानना है कि संसार को प्रकृति के शोषण का फल मिल रहा है।
शायद ये सही भी है तभी तो कोरोना केवल इंसान से इंसान में फैलता है जानवरों में नहीं।
कोरोना और लॉकडाऊन के चलते सब लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहें हैं।
जिससे अपराधों में गिरावट भी आ रही है।
प्रदूषण कम हो गया है और नदियों का पानी भी स्वच्छ दिख रहा है।
और साथ ही घर पर रुके अत्याधिक व्यस्त लोग भी जब परिवार के संग समय बिता रहें हैं तो उन्हें परिवार के साथ का मूल्य पता चल रहा है।
खैर सच कहूं तो कोरोना ने नकारात्मक और सकारात्मक दोनों परिणाम दिये है।
इन दिनों के बदले हालात हमारे आने वाले जीवन में भी बहुत सारे परिवर्तन लायेंगे।
अब इंतजार इस महामारी से निपटने के बाद की संसार की स्थिति देखने का है।
कितना, कहां, कैसे बदल गया।
धन्यवाद, सुरक्षित रहिए अपने घरों में रहिए।
लेखिका / कवयित्रीं
अंकिता जैन अवनी
अशोकनगर,मप्र.
लाॅकडाऊन और बदली जीवन शैली"
कोरोना जैसी गंभीर महामारी से लड़ने के लिए,
भारत में पहले 21 दिन के लाॅकडाऊन और फिर लॉकडाऊन की अवधि को बढ़ाया जाना, निश्चित तौर पर हम सबके सुरक्षित जीवन को मद्देनजर रखते हुए लिया गया एक बड़ा फैसला है।
पर जब हम निजी तौर पर इस लाॅकडाऊन और इससे उपजी समस्याओं को देखते हैं, तो मन बहुत दुखी हो जाता है।
कुछ लोग जो अपने परिवार से दूर है उनके मन की पीड़ा शायद शब्दों में वयां न हो, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं जो अपनी बचत से घर चला रहें हैं और साथ ही साथ इस चिंता में भी जी रहें हैं कि पैसे खत्म हो गये तो क्या करेंगे।
वहीं हमारे मजदूर भाई जो रोज कमा कर अपना घर चलाते हैं, उनके समक्ष जीवन यापन की समस्या खड़ी है।
खैर हमारी सरकार और बहुत सारे लोगों ने इस समय मदद के लिए हर संभव प्रयास किया है और आगे भी करेंगे।
पर सबाल यहां यह उठता है कि कोरोना ने हम सबकी जिंदगी पूरी तरह बदलकर रख दी।
लोग घरों में रुक गये,
बहुत सारा काम अपनी जगह पर रुक गया,
कुछ लोग इस महामारी को प्रकृति का प्रकोप बता रहे हैं,उनका मानना है कि संसार को प्रकृति के शोषण का फल मिल रहा है।
शायद ये सही भी है तभी तो कोरोना केवल इंसान से इंसान में फैलता है जानवरों में नहीं।
कोरोना और लॉकडाऊन के चलते सब लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहें हैं।
जिससे अपराधों में गिरावट भी आ रही है।
प्रदूषण कम हो गया है और नदियों का पानी भी स्वच्छ दिख रहा है।
और साथ ही घर पर रुके अत्याधिक व्यस्त लोग भी जब परिवार के संग समय बिता रहें हैं तो उन्हें परिवार के साथ का मूल्य पता चल रहा है।
खैर सच कहूं तो कोरोना ने नकारात्मक और सकारात्मक दोनों परिणाम दिये है।
इन दिनों के बदले हालात हमारे आने वाले जीवन में भी बहुत सारे परिवर्तन लायेंगे।
अब इंतजार इस महामारी से निपटने के बाद की संसार की स्थिति देखने का है।
कितना, कहां, कैसे बदल गया।
धन्यवाद, सुरक्षित रहिए अपने घरों में रहिए।
लेखिका / कवयित्रीं
अंकिता जैन अवनी
अशोकनगर,मप्र.
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