वो कहता है चाँद हूँ मैं ..................
उलझा सा राज़ हूँ मैं ...
जो बना बड़ी मुद्दतों बाद ..
निखरा सा वो ताज हूँ मैं ..
काँटों में भी जो है महके
भंवरों से भी जो ना बहके
लिए गुलाबी वो आभा ..
महका गुलाब हूँ मैं...
दे डाली कितनी उपमा ..
ना जाने यूँ ही उसने ..
मुझको तो बस है लगता ..
सजी सुनहरे हर्फों में..
दुःख दर्द ,सबका बाँटती ..
नव सृजन भरी वो बस ...
लिखी यूँ ही बेतरतीब सी
कोई किताब हूँ मैं
लेखिका-
पूनम दहिया ।

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