-कोरोना पर -
क्या रातें थीं क्या बातें थीं
हम सोए सोए रहते थे...
इक दूजे की बांहों में गुम
हम खोये खोये रहते थे..
ये आग लगी ऎसी जगमें
मातम ही मातम छाया है..
अब ख़्वाब भी आता है कोई
दिल को दहला कर जाता है....
कहीं लाशों की है ढेर पड़ी
कहीं सपनों की है राख बड़ी..
घर छोड़ के गया मुसाफ़िर भी
अब वापस आया जाता है...
माँ अब विनती स्वीकार करो
तम हरो औ दूर विकार करो
इस "कोरोना"रूपी असुर का माँ
बस तुम ही अब संहार करो... !!!
लेखिका -
डॉ. प्रभा रानी
@सर्वाधिकार सुरक्षित
क्या रातें थीं क्या बातें थीं
हम सोए सोए रहते थे...
इक दूजे की बांहों में गुम
हम खोये खोये रहते थे..
ये आग लगी ऎसी जगमें
मातम ही मातम छाया है..
अब ख़्वाब भी आता है कोई
दिल को दहला कर जाता है....
कहीं लाशों की है ढेर पड़ी
कहीं सपनों की है राख बड़ी..
घर छोड़ के गया मुसाफ़िर भी
अब वापस आया जाता है...
माँ अब विनती स्वीकार करो
तम हरो औ दूर विकार करो
इस "कोरोना"रूपी असुर का माँ
बस तुम ही अब संहार करो... !!!
लेखिका -
डॉ. प्रभा रानी
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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