हे आत्माओं प्रेम स्वतंत्रता सिखाता है और मोह बंधन तो जगत में प्रेम करना सीखें मोह नही,यदि आपने ये गुण धारण कर लिया तो फिर सृष्टि की आधी समस्याओं का समाधान खुद ब खुद हो जायेगा अपने अपने जीवन में "ॐ जय जगदीश हरे" आरती को आप सबने ना जाने कितनी बार पढ़ा होगा सुना होगा या फिर गाया होगा, कंठस्थ भी होगी बहुत सारे बंधुओं को,उसकी चार पंक्ति आपको सुनाना चाहती हूँ क्या आप बंधुओं ने भी कभी उन पर मंथन किया है..?मैंने किया जो मैं आप बंधुओं के साथ शेयर करना चाहती हूँ हमारे जीवन मे शब्दों का बड़ा महत्व है शब्द की महिमा है शब्दों के मर्मज्ञ शिरोमणि हो गये तो ऐसे ही शब्दों से आरती में एक स्थान पर आता है "तुम हो एक अगोचर सबके प्राण पति किस विध मिलूं दयामय मैं तुमको कुमति" अर्थात आत्मा उस परमात्मा से बोल रही कि तुम जो इन आँखों से दिखाई नही देते हो फिर भी सबके प्राणों की रक्षा करते हो ऐसी कौन सी विधि है जिससे मैं आपसे मिल सकूँ मेरे में वो मति नही है मतलब बुद्धि नही है जिससे मैं तुम से मिल सकूँ आप मुझे वो बताओ...?फिर एक स्थान पर आता है "विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा" श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ सन्तन की सेवा"अर्थात मेरी आत्मा का जो विषय है "काम क्रोध लोभ मोह अहंकार" इनसे जो मेरे विकार "(मतलब विपरीत कार्य)बनें है जिनके कारण मेरे पाप बढ़ गए है मैं आत्मा पाप की भागीदार हो गई हूँ उनको हे देवा तुम हर लो और मेरे अंदर अपनी श्रद्धा भक्ति को बढ़ा दो जिससे मैं सन्तजनों की सेवा कर सकूँ अर्थात सच्चे का संग करने वाले उन तनों की सेवा कर सकूँ जो सन्त बन गए है....कहने का तात्पर्य ये है कि हमारी आत्मा सदा ही परमात्मा को पुकारती है अपने सही गलत होने का बखान करती है गुहार लगाती हैं कि मुझे अब तुम बचा लो जैसे आज के माहौल के हिसाब से संसार मे एक भजन ओर आया था आप सबने भी सुना होगा ...?
"घर घर मे है बैठा रावण इतने राम कहाँ से लाऊं" अर्थात पहले तो एक रावण ओर राम की बात थी पर आज के दौर में तो हर घर में 10(मतों)बुद्धि से चलने वाले बन्धु बैठें जो पांच तत्वों से बना शरीर(पृथ्वी आकाश अग्नि जल वायु )ओर पांच विकार (काम क्रोध लोभ मोह अंहकार)ये दोनों मिलकर 10 सिर वाला रावण बनते है जिसके कारण पाप बढ़ रहा है उसको मारने के लिये इतने राम कहाँ से लाऊं तो हे आत्माओं शब्दों की महिमा को जानो ओर अपने आप को बचा लो सुरक्षित कर लो माँ ईश्वर के गुणगान से...."वन्देमातरम"माँ भारती गिरी गुरुश्री स्वामी मनसुख गिरी जी श्री दशनाम जुना अखाड़ा जूनागढ़
आप सभी देशवासियों को जगत गुरु श्री शंकराचार्य महाराज जी की जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ "ॐ नमो नारायण"
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