एक महाभारत तब भी हो जाती है,
जब एक स्त्री अपना अधिकार मांगती है।
वो तब तक ही कहलाती है देवी,,
जब तक वो अपने सपनो को खुंटी पर टांगती है।
एक स्त्री जो सृजनकर्ता है, बच्चों को जन्म दे कर खुद में एक माँ का सृजन करती है, पति में पिता का सृजन करती है,सृष्टि की सृजन प्रकिया को आगे बढ़ाती है ।परंतु वही स्त्री जब अपना अधिकार मांगती है,हक मांगती है,अपनी इच्छाओं और अपने सपनो का मार्ग मांगती है तो अक्सर एक महाभारत वहां भी हो जाया करती। वो महाभारत होती है उसके खुद के विचारो और अपनों के बीच। उसके विचार उसे अर्जुन की भांति गांडीव रूपी सपनों को फेंक देने की बात करते हैं।उसके विचार कहते है कि फेंक अपने सपनों रूपी इस गांडीव को आखिर तेरे सामने तेरे अपने ही तो हैं। तू किससे जीतेगी और किसे हराएगी ,हर और तेरे अपने हैं।उन विचारों को यदि वो अपने हक माँगने का गीता का उपदेश सुना कर शांत भी करवा देती है तो उसके अपने स्वयं कौरव पक्ष की भांति उठ खड़े होते हैं और कहते हैं कि तू युद्ध कर या ना कर,अपने गांडीव रूपी सपनों को उठा या ना उठा ,पर हम तेरे सपनों को पूरा करना तो दूर ,तेरे सपनों को पूरा करने के के लिए एक सुई की नोक जितनी भी जमीन नहीं देंगे।कौन कहता है कि अपनो की कामयाबी में सबसे ज्यादा अपने ही खुश होते हैं, वो महाभारत अपनो के बीच ही तो हुई थी ,एक दूसरे को आगे न बढ़ने देने के कारण। वो राम जी का वनवास अपनों ने ही तो दिलवाया था।
कहते हैं कि स्त्रियां अपना भाग्य स्वयं लिखवा कर लाती हैं मगर कुछ स्त्रियां अपनी ही भाग्य विधाता नहीं बन पाती हैं। और जिन स्त्रियों के हाथों में कलम होती है वो स्त्रियां क़लमकार नहीं, कातिल नजर आती है। उनके हाथ में कलम होने से कतल होता है कुछ पुरूषों का मिथ्या दंभ,कतल होता है उसके कुछ अपनों का स्वाभिमान। शायद इसलिये वो कातिल नजर आती हैं।कुछ स्त्रियों के हाथों में भाग्य रेखाएं नहीं बल्कि मार्ग रेखाएं छपी होती हैं ,पिता से पति के घर तक की मार्ग रेखा,पति से परमात्मा तक के मार्ग की रेखा।उसे बस उसी मार्ग पर चलना है जो उसके लिए बना दिया गया, यदि स्वयं के मार्ग पर चली तो शायद वो पुरुष से कहीं आगे बढ़ जाएंगी, और यही आगे बढ़ना आदिकाल से ही हमेंशा सबको खलता रहा है।बस यूंही कुछ स्त्रियों का भाग्य फूटता रहा है।
✍Monika Chahal Bangar (पांचाली)
जब एक स्त्री अपना अधिकार मांगती है।
वो तब तक ही कहलाती है देवी,,
जब तक वो अपने सपनो को खुंटी पर टांगती है।
एक स्त्री जो सृजनकर्ता है, बच्चों को जन्म दे कर खुद में एक माँ का सृजन करती है, पति में पिता का सृजन करती है,सृष्टि की सृजन प्रकिया को आगे बढ़ाती है ।परंतु वही स्त्री जब अपना अधिकार मांगती है,हक मांगती है,अपनी इच्छाओं और अपने सपनो का मार्ग मांगती है तो अक्सर एक महाभारत वहां भी हो जाया करती। वो महाभारत होती है उसके खुद के विचारो और अपनों के बीच। उसके विचार उसे अर्जुन की भांति गांडीव रूपी सपनों को फेंक देने की बात करते हैं।उसके विचार कहते है कि फेंक अपने सपनों रूपी इस गांडीव को आखिर तेरे सामने तेरे अपने ही तो हैं। तू किससे जीतेगी और किसे हराएगी ,हर और तेरे अपने हैं।उन विचारों को यदि वो अपने हक माँगने का गीता का उपदेश सुना कर शांत भी करवा देती है तो उसके अपने स्वयं कौरव पक्ष की भांति उठ खड़े होते हैं और कहते हैं कि तू युद्ध कर या ना कर,अपने गांडीव रूपी सपनों को उठा या ना उठा ,पर हम तेरे सपनों को पूरा करना तो दूर ,तेरे सपनों को पूरा करने के के लिए एक सुई की नोक जितनी भी जमीन नहीं देंगे।कौन कहता है कि अपनो की कामयाबी में सबसे ज्यादा अपने ही खुश होते हैं, वो महाभारत अपनो के बीच ही तो हुई थी ,एक दूसरे को आगे न बढ़ने देने के कारण। वो राम जी का वनवास अपनों ने ही तो दिलवाया था।
कहते हैं कि स्त्रियां अपना भाग्य स्वयं लिखवा कर लाती हैं मगर कुछ स्त्रियां अपनी ही भाग्य विधाता नहीं बन पाती हैं। और जिन स्त्रियों के हाथों में कलम होती है वो स्त्रियां क़लमकार नहीं, कातिल नजर आती है। उनके हाथ में कलम होने से कतल होता है कुछ पुरूषों का मिथ्या दंभ,कतल होता है उसके कुछ अपनों का स्वाभिमान। शायद इसलिये वो कातिल नजर आती हैं।कुछ स्त्रियों के हाथों में भाग्य रेखाएं नहीं बल्कि मार्ग रेखाएं छपी होती हैं ,पिता से पति के घर तक की मार्ग रेखा,पति से परमात्मा तक के मार्ग की रेखा।उसे बस उसी मार्ग पर चलना है जो उसके लिए बना दिया गया, यदि स्वयं के मार्ग पर चली तो शायद वो पुरुष से कहीं आगे बढ़ जाएंगी, और यही आगे बढ़ना आदिकाल से ही हमेंशा सबको खलता रहा है।बस यूंही कुछ स्त्रियों का भाग्य फूटता रहा है।
✍Monika Chahal Bangar (पांचाली)
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