*वर्दी का फर्ज निभाना*
रवि को घर आया देख मां आश्चर्य में पड़ गई,ऐसा कैसे हो सकता है अभी तो छुट्टियों का भी अभी समय नहीं है। माना की उसकी तबीयत खराब जरूर है,जोड़- जोड़ दर्द कर रहा है,पर रवि को इत्तिला किसने दी और ये कोई समय है इसका घर पर आने का,
"मां ! दरवाजा तो पूरा खोलो सूटकेस अंदर नहीं अा रहा"
हतप्रभ मां दरवाजे के एक कोने मे लगी रही"पैर छुने के लिए रवि झुका तो तुरंत सीधा खड़ा हो गया"मां तुमको तो कितनी तेज बुखार है चलो डाक्टर के पास अभी चलो,मेरे बुखार को छोड़ ! पहले ये बता कि तुझे छुट्टी दी किसने,वो भी ऐसे समय में जब देश को सबसे ज्यादा तेरी जरूरत है । कैसे इतना खुदगर्ज हो गया रे तू,मेरा बुखार क्या है एक दो गोली लूंगी,ठीक हो जाएगा पर "जो तू अपनी ड्यूटी ना निभा पाया वो शूल-दिल से ना निकल पाएगा।"
मां मुझे सतीश का फोन आया तो मैंने छुट्टी ले ली मेरा इस दुनिया में तेरे सिवाय दूसरा है ही कौन नहीं "तू जिस पैर आया है उन्ही पैरो से वापस चला जा"और जिस दिन ये बीमारी-कंट्रोल में अा जाएगी,तुझे खुशी से जब छुट्टी मिलेगी,उससे पहले घर का रुख मत करना ।
बांह पकड़ कर अरुंधती ने पुत्र (रवि) को बाहर करके गेट लगा लगाते ही,थोडी देर मे धम्म से गिर पड़ी । रवि की पुलिस मे भर्ती उसके पापा के स्थान पर पिछले, तीन साल पहले हुई थी । उसके पापा पुलिस महकमे में ऊंचे ओहदे पर थे,मुजफ्फरनगर दंगो में शहीद हो गए थे,घर में बीबी अरुंधती और बी.काम कर रहे पुत्र को बेसहारा छोड़ गए थे । रवि ने तो पूरी तरह होश संभाल लिया,सरकार की तरफ से पापा के स्थान पर उसे योग्यता-अनुसार ड्यूटी मिल गई । रवि का भाग्य ही था,क्योंकि कानून किसी को कितना आगे ले जाए पता नहीं होता,चलो शुक्र है नौकरी तो मिल गई,रवि बड़ा ही होनहार मां बाप का इकलौता था बेटा था,पापा की असमय मृत्यु ने पहले से ही शांत स्वभाव के रवि को और ज्यादा संजीदा बना दिया था । अभी रवि की नौकरी भीलवाड़ा में लगी हुई थी,पिछले छह महीनों से उसे छुट्टी नहीं मिली थी,पहले वो सीएए के प्रदर्शन,फिर ये कोरोना-वायरस ड्यूटी में राहत बिल्कुल भी नही मिल पा रही थी । मामला खराब होता जा रहा था,तीन तरह की सेवा दलों को तो कही दम भरने कि भी फुर्सत नहीं थी । सफाई कर्मचारी,डाक्टर-नर्स और पुलिस तीनों कि ड्यूटी गंभीर होती जा रही थी । किसी तरह सुपरिटेंडेंट ने रवि की मां का समाचार सुनकर उसे तीन दिन की छुट्टी दी थी,पर मां ने फर्ज के आगे उसको बैरंग लौटा दिया । *पहले रक्षा भारत मां की* फिर स्वयं की मां की,देर रात के समय तेज बुखार ज्यादा बढ़ चुका था,विक्षिप्तता अा चुकी थी मां को अपना अन्तिम समय निकट दिख रहा था,पर माथे पर कोई भी शिकन नहीं थी,हाथो को पति की तस्वीर के आगे अंतिम बार जोड़ा व अपना शरीर त्याग दिया । कल तक देश की रक्षा करने वाले कर्मठ-सिपाही तक उसके आखिरी सहारा ना होने की बात पहुंच ही जाएगी,क्या फर्क पड़ता यदि वो मां की दो घड़ी सेवा कर लेता,पर "मां तो मां है"बेटे को फर्ज की याद दिलाना भी तो उसी का काम था । क्या हुआ जो एक रवि के सिर से साया उठ गया,पर वो तमाम मांये तो है जिनकी गोद में बच्चे खेल सकेंगे, धन्य है वो *निस्वार्थ मां* भारत मां के वीर को एक अनूठी लगन को कायम रखते हुए देश की रक्षा पहले करने की व *वर्दी का फर्ज निभाना* की सीख दी धन्य है, ऐसी मां भारती को समस्त-देश का विनम्र नम-आँखो से सादर-प्रणाम व सलाम है ।
रेणुका अरोड़़ा
उपन्यासकार, साहित्यकार
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ।
रवि को घर आया देख मां आश्चर्य में पड़ गई,ऐसा कैसे हो सकता है अभी तो छुट्टियों का भी अभी समय नहीं है। माना की उसकी तबीयत खराब जरूर है,जोड़- जोड़ दर्द कर रहा है,पर रवि को इत्तिला किसने दी और ये कोई समय है इसका घर पर आने का,
"मां ! दरवाजा तो पूरा खोलो सूटकेस अंदर नहीं अा रहा"
हतप्रभ मां दरवाजे के एक कोने मे लगी रही"पैर छुने के लिए रवि झुका तो तुरंत सीधा खड़ा हो गया"मां तुमको तो कितनी तेज बुखार है चलो डाक्टर के पास अभी चलो,मेरे बुखार को छोड़ ! पहले ये बता कि तुझे छुट्टी दी किसने,वो भी ऐसे समय में जब देश को सबसे ज्यादा तेरी जरूरत है । कैसे इतना खुदगर्ज हो गया रे तू,मेरा बुखार क्या है एक दो गोली लूंगी,ठीक हो जाएगा पर "जो तू अपनी ड्यूटी ना निभा पाया वो शूल-दिल से ना निकल पाएगा।"
मां मुझे सतीश का फोन आया तो मैंने छुट्टी ले ली मेरा इस दुनिया में तेरे सिवाय दूसरा है ही कौन नहीं "तू जिस पैर आया है उन्ही पैरो से वापस चला जा"और जिस दिन ये बीमारी-कंट्रोल में अा जाएगी,तुझे खुशी से जब छुट्टी मिलेगी,उससे पहले घर का रुख मत करना ।
बांह पकड़ कर अरुंधती ने पुत्र (रवि) को बाहर करके गेट लगा लगाते ही,थोडी देर मे धम्म से गिर पड़ी । रवि की पुलिस मे भर्ती उसके पापा के स्थान पर पिछले, तीन साल पहले हुई थी । उसके पापा पुलिस महकमे में ऊंचे ओहदे पर थे,मुजफ्फरनगर दंगो में शहीद हो गए थे,घर में बीबी अरुंधती और बी.काम कर रहे पुत्र को बेसहारा छोड़ गए थे । रवि ने तो पूरी तरह होश संभाल लिया,सरकार की तरफ से पापा के स्थान पर उसे योग्यता-अनुसार ड्यूटी मिल गई । रवि का भाग्य ही था,क्योंकि कानून किसी को कितना आगे ले जाए पता नहीं होता,चलो शुक्र है नौकरी तो मिल गई,रवि बड़ा ही होनहार मां बाप का इकलौता था बेटा था,पापा की असमय मृत्यु ने पहले से ही शांत स्वभाव के रवि को और ज्यादा संजीदा बना दिया था । अभी रवि की नौकरी भीलवाड़ा में लगी हुई थी,पिछले छह महीनों से उसे छुट्टी नहीं मिली थी,पहले वो सीएए के प्रदर्शन,फिर ये कोरोना-वायरस ड्यूटी में राहत बिल्कुल भी नही मिल पा रही थी । मामला खराब होता जा रहा था,तीन तरह की सेवा दलों को तो कही दम भरने कि भी फुर्सत नहीं थी । सफाई कर्मचारी,डाक्टर-नर्स और पुलिस तीनों कि ड्यूटी गंभीर होती जा रही थी । किसी तरह सुपरिटेंडेंट ने रवि की मां का समाचार सुनकर उसे तीन दिन की छुट्टी दी थी,पर मां ने फर्ज के आगे उसको बैरंग लौटा दिया । *पहले रक्षा भारत मां की* फिर स्वयं की मां की,देर रात के समय तेज बुखार ज्यादा बढ़ चुका था,विक्षिप्तता अा चुकी थी मां को अपना अन्तिम समय निकट दिख रहा था,पर माथे पर कोई भी शिकन नहीं थी,हाथो को पति की तस्वीर के आगे अंतिम बार जोड़ा व अपना शरीर त्याग दिया । कल तक देश की रक्षा करने वाले कर्मठ-सिपाही तक उसके आखिरी सहारा ना होने की बात पहुंच ही जाएगी,क्या फर्क पड़ता यदि वो मां की दो घड़ी सेवा कर लेता,पर "मां तो मां है"बेटे को फर्ज की याद दिलाना भी तो उसी का काम था । क्या हुआ जो एक रवि के सिर से साया उठ गया,पर वो तमाम मांये तो है जिनकी गोद में बच्चे खेल सकेंगे, धन्य है वो *निस्वार्थ मां* भारत मां के वीर को एक अनूठी लगन को कायम रखते हुए देश की रक्षा पहले करने की व *वर्दी का फर्ज निभाना* की सीख दी धन्य है, ऐसी मां भारती को समस्त-देश का विनम्र नम-आँखो से सादर-प्रणाम व सलाम है ।
रेणुका अरोड़़ा
उपन्यासकार, साहित्यकार
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ।
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