--इंसानियत--
“ नफरतों के बाजारों को गुनहगारों ने सजा रखा हैं,
मजहब के नाम पर हवाओं ने भी जहर घोल रखा हैं ।
नैतिकता मानवता और इंसानियत ही सच्चा धर्म हैं,
अब लगता हैं यह सब मानव बुला रखा हैं ।।
प्रकृति ने मानव को पाला हैं ,
यहां तक की रहने के लिए जमीं भी दे डाला हैं ।
पानी के लिए तो मां गंगा भी चली आई
किंतु विष का प्याला लिए, उसी को मैंला कर डाला हैं ।।
आंसू ,गम और दर्द अब किसी को समझ नहीं आता
भूखों की व्याकुलता पर अब कोई तरस नहीं खाता
बेबस, असहायों पर अब नजर नहीं जाती
इंसानियत इंसान को इंसान बनाती थी
पर अब वह भी नजर नहीं आती ।।
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
“ नफरतों के बाजारों को गुनहगारों ने सजा रखा हैं,
मजहब के नाम पर हवाओं ने भी जहर घोल रखा हैं ।
नैतिकता मानवता और इंसानियत ही सच्चा धर्म हैं,
अब लगता हैं यह सब मानव बुला रखा हैं ।।
प्रकृति ने मानव को पाला हैं ,
यहां तक की रहने के लिए जमीं भी दे डाला हैं ।
पानी के लिए तो मां गंगा भी चली आई
किंतु विष का प्याला लिए, उसी को मैंला कर डाला हैं ।।
आंसू ,गम और दर्द अब किसी को समझ नहीं आता
भूखों की व्याकुलता पर अब कोई तरस नहीं खाता
बेबस, असहायों पर अब नजर नहीं जाती
इंसानियत इंसान को इंसान बनाती थी
पर अब वह भी नजर नहीं आती ।।
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

0 comments:
Post a Comment