एक समुद्री यात्रा,जिसमें महीनों का वक्त लगना था. जलयान के कर्मचारी यात्रा के दौरान अपने उन वस्तुएं का भंडारण करते जो यात्रा अवधि में उनके उपयोग की होती.
उस यात्रा में एक ऐसा भी कर्मचारी था जो चरसी था. उसने अपनी यात्रा की तैयारी में चरस की व्यवस्था पहले की. जिससे की पूरी यात्रा अवधि में उसकी चरस कम न पड़े. जिससे कि बिना किसी मानसिक व्यवधान के यात्रा पूरी की जा सके.
जलयान समुद्र में चल रहा था. चारो ओर अनन्त सागर. समुद्र अपने नशे में था और चरसी अपने नशे में. एक दिन चरसी का एक साथी उसके बैग में कुछ ढ़ूंढ रहा था तभी उसके हाथ उसका चरस का पैकेट लग गया. साथी ने ज्यों देखा कि यह चरस का पैकेट है उसने उसे खिड़की के रास्ते समुद्र में अर्पण कर दिया. चरसी को यह तनिक भी अंदेशा नहीं था कि उसका साथी इतना जघन्य अपराध कर देगा.. वह चीखा! भागकर समुद्र की तरह कातर नजरों से देखा फिर लौटकर अपने साथी पर टूट पड़ा. साथी ने भागकर अपनी जान बचाई. लाचार चरसी फूटफूटकर रोने लगा. फिर नशे की बेला आई. चरसी, घायल साँप की तरह तड़पता..अपने साथी की सात पुश्तों को घिनौनी गालियों से नवाजता. साथी खुद भी भयभीत था... उसे कतई यह अंदाजा नहीं था कि उसका साथी इस कदर नशे की गिरफ्त में है. अब चरसी दिनबदिन लाचार होने लगा. दिन रात कराहता.. साथी की हत्या और आत्महत्या की धमकी देता. उसका साथी उससे अपनी जान बचाकर रहने लगा. उसे आश्वासन देता कि " मित्र! तट पर पहुंचते ही तुम्हारे लिए दोगुना बन्दोबस्त कर दूंगा लेकिन आज माफ कर दो.. चरसी कहता- " साले मैं जिन्दा बचूंगा तब न खरीदेगा.. तुमने मेरी हत्या की है..जिसे तू सिर्फ एक पोटली समझ रहा था उसमें मेरी जान बसी थी.. तूने पोटली नहीं मुझे समुद्र में फेंका है हत्यारे.
दिन गुजरते गये.. अब चरसी कमजोर पड़ता गया.. साथ में उसकी आवाज भी. धीरे-धीरे नशा अपनी गिरफ्त ढ़ीली करने लगा और चरसी भी अपने साथी पर ढ़ीला.. यात्रा समाप्त होने को आयी. उधर यात्रा की समाप्ति तक चरसी भी नशे से लगभग मुक्त हो चुका था. यात्रा समाप्ति पर उसके साथी ने पूछा- " बता कहां मिलेगी तेरी चरस'
चरसी हाथ जोड़कर बोला- " मित्र मेरी पोटली समुद्र में डूब गई और मेरा नशा जहाज में. अब मैं इस नशे से मुक्त हूँ मेरे दोस्त. मैं नशे में पूरी तरह से भूल चुका था कि जिन्दा रहने का अर्थ क्या है? "
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समाज का कोई व्यक्ति जब अपने जीवन को दांव पर लगाकर किसी जिद्द पर अड़ा रहे तो समझिए कि वो नशे में है. जब भी कोई व्यक्ति या तंत्र उसके नशे में व्यवधान उत्पन्न करेगा तो वह आक्रामक हो जायेगा. लेकिन आपके चरस के धुंए से जब किसी दूसरे की जान को खतरा बन जाये तो क्यों न आपकी पोटली समुद्र में फेंक दी जाये. हो सकता है कि यात्रा समाप्त होने के बाद पता चले कि जीवन कितना महत्वपूर्ण है..यदि नहीं भी चलेगा तब भी दूसरे की जान तो बच जायेगी. आप अपनी पोटली फिर तैयार कर लिजियेगा ।
देवी स्वाति सेवा संस्थान ट्रस्ट (रजि.)
मुख्य उद्देश्य अनाथ व गरीब लड़कियों को शिक्षित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना ।
संस्थापक अध्यक्ष
पूज्या देवी स्वाति जी
कथा व्यास
Whatsapp : 9115970544
उस यात्रा में एक ऐसा भी कर्मचारी था जो चरसी था. उसने अपनी यात्रा की तैयारी में चरस की व्यवस्था पहले की. जिससे की पूरी यात्रा अवधि में उसकी चरस कम न पड़े. जिससे कि बिना किसी मानसिक व्यवधान के यात्रा पूरी की जा सके.
जलयान समुद्र में चल रहा था. चारो ओर अनन्त सागर. समुद्र अपने नशे में था और चरसी अपने नशे में. एक दिन चरसी का एक साथी उसके बैग में कुछ ढ़ूंढ रहा था तभी उसके हाथ उसका चरस का पैकेट लग गया. साथी ने ज्यों देखा कि यह चरस का पैकेट है उसने उसे खिड़की के रास्ते समुद्र में अर्पण कर दिया. चरसी को यह तनिक भी अंदेशा नहीं था कि उसका साथी इतना जघन्य अपराध कर देगा.. वह चीखा! भागकर समुद्र की तरह कातर नजरों से देखा फिर लौटकर अपने साथी पर टूट पड़ा. साथी ने भागकर अपनी जान बचाई. लाचार चरसी फूटफूटकर रोने लगा. फिर नशे की बेला आई. चरसी, घायल साँप की तरह तड़पता..अपने साथी की सात पुश्तों को घिनौनी गालियों से नवाजता. साथी खुद भी भयभीत था... उसे कतई यह अंदाजा नहीं था कि उसका साथी इस कदर नशे की गिरफ्त में है. अब चरसी दिनबदिन लाचार होने लगा. दिन रात कराहता.. साथी की हत्या और आत्महत्या की धमकी देता. उसका साथी उससे अपनी जान बचाकर रहने लगा. उसे आश्वासन देता कि " मित्र! तट पर पहुंचते ही तुम्हारे लिए दोगुना बन्दोबस्त कर दूंगा लेकिन आज माफ कर दो.. चरसी कहता- " साले मैं जिन्दा बचूंगा तब न खरीदेगा.. तुमने मेरी हत्या की है..जिसे तू सिर्फ एक पोटली समझ रहा था उसमें मेरी जान बसी थी.. तूने पोटली नहीं मुझे समुद्र में फेंका है हत्यारे.
दिन गुजरते गये.. अब चरसी कमजोर पड़ता गया.. साथ में उसकी आवाज भी. धीरे-धीरे नशा अपनी गिरफ्त ढ़ीली करने लगा और चरसी भी अपने साथी पर ढ़ीला.. यात्रा समाप्त होने को आयी. उधर यात्रा की समाप्ति तक चरसी भी नशे से लगभग मुक्त हो चुका था. यात्रा समाप्ति पर उसके साथी ने पूछा- " बता कहां मिलेगी तेरी चरस'
चरसी हाथ जोड़कर बोला- " मित्र मेरी पोटली समुद्र में डूब गई और मेरा नशा जहाज में. अब मैं इस नशे से मुक्त हूँ मेरे दोस्त. मैं नशे में पूरी तरह से भूल चुका था कि जिन्दा रहने का अर्थ क्या है? "
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समाज का कोई व्यक्ति जब अपने जीवन को दांव पर लगाकर किसी जिद्द पर अड़ा रहे तो समझिए कि वो नशे में है. जब भी कोई व्यक्ति या तंत्र उसके नशे में व्यवधान उत्पन्न करेगा तो वह आक्रामक हो जायेगा. लेकिन आपके चरस के धुंए से जब किसी दूसरे की जान को खतरा बन जाये तो क्यों न आपकी पोटली समुद्र में फेंक दी जाये. हो सकता है कि यात्रा समाप्त होने के बाद पता चले कि जीवन कितना महत्वपूर्ण है..यदि नहीं भी चलेगा तब भी दूसरे की जान तो बच जायेगी. आप अपनी पोटली फिर तैयार कर लिजियेगा ।
देवी स्वाति सेवा संस्थान ट्रस्ट (रजि.)
मुख्य उद्देश्य अनाथ व गरीब लड़कियों को शिक्षित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना ।
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पूज्या देवी स्वाति जी
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