शीर्षक –‘ बहुत दिनों के बाद'
आज फिर उनको देखी,बहुत दिनों के बाद ।
आॅ॑खें थी पथराई, थे उसमें बड़े सवाल
बहुत दिनों के बाद ।
मौन खड़े रह , असंख्य सवाल किए
बहुत दिनों के बाद
भर आयी आॅ॑खें मेरी ,बहुत दिनों के बाद ।
आज फिर उनको देखी,बहुत दिनों के बाद ।
मृगशिरा सी तड़पन लें, बारिश की बूंदे बनना चाहते थे
बहुत दिनों के बाद
मैं भी भ्रामरी सी ,कमलपुष्प का प्रेम चाहती थी
बहुत दिनों के बाद ।
आज फिर उनको, देखी बहुत दिनों बाद ।
पारलौंकिक प्रेम का गूढ़ रहस्य ले
आलौंकिक प्रेम में खड़े रहें,बहुत दिनों के बाद ।
आत्ममुग्धता में मैं डूबी,बहुत दिनों के बाद ।
आज फिर उनको देखी,बहुत दिनों के बाद ।।
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

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