“पहले पहल पग में ,कोरोंना ने साथी बनाया
घर के बुजुर्गों को..
हुआ सत्कार फिर ,आरती हुई
कि!
तभी दूसरा पग, रख दिया उसने
और साथी बनाया जवान दोस्तों को...
फिर पड़ गया कम, आॅक्सीजन ,दवाएं
घोर त्राहि– त्राहि स्वर से, थोड़े ही सम्हले थे
कि!
फिर तभी तीसरे पग का, स्वर गूॅ॑ज उठा
इस बार कोरोना ‘ माॅ॑ ' को ललकारेगा
सुनि हूॅ॑ अब तक,पढ़ी हूॅ॑ अब तक
माॅ॑ से कोई त्रासदी , माॅ॑ से कोई विपदा
अब तक न जीत पायी हैं
देखती हूॅ॑ इस पग पर ,क्या होगा? कोरोना का
ये तीन पग का कोरोना ।।"
रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ।
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