बचपन - डॉ. जानकी झा

 शीर्षक - बचपन


बचपन की नादानियां

दोस्तों संग बदमासियां

छिप छिप कर भाई बहनों संग

घर पर होती शैतानियां।


न किसी बात की फिक्र

न किसी बात का गम

पलक झपकते सब मिल जाता

दादा दादी के प्यार से मन खुश रहता।


दिन भर पढ़ने मम्मी कहती

पापा कहते बच्ची मेरी है छोटी

चिड़ियों की तरह हम चहकते रहते

खेल कूद कर दिन बिताते।


पर देखो अब कैसा समय है आया

मोबाइल में है हमने दिन बिताया

ऑनलाइन में पढ़ाई करके बचपन से ही नई तकनीकों को जाना।


घर को ही स्वर्ग माना

घर पर ही विद्यालय का काम है करना

घर को ही हमने पार्क बनाया

स्वयं को हमने कोरोना से बचाया।


मां पापा अब साथ हैं रहते

घर पर ही ऑफिस का काम हैं करते

बच्चों को अब पूरा प्यार है मिलता

दादा-दादी के होठों पर भी है मुस्कान रहता।


हम बच्चों को और क्या चाहिए

बस बचपन में प्यार बेशुमार चाहिए।।

Dr Janki Jha

Assistant Professor

Cuttack,Odisha

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