शीर्षक - इंसान बनो
आज भी जिंदा है इंसानियत
इस झूठे संसार में
जहां छोड़ जाते हैं अपने
स्वार्थ हासिल हो जाने पर
वहीं कुछ पराए भी अपने बन जाते हैं
दया, ममता और इंसानियत निभाते हैं
आंसू पोछने भागे चले आते हैं
न ही लालच, न गिला शिकावा किसी से करते हैं
बस मानव धर्म निभाते जाते हैं
कभी भूखों के मुंह में निवाला देकर
कभी असहाय को कंधा देकर
इंसानियत का टेक रखते हैं
ईश्वर का रूप धारण कर
कई समस्याओं का हल करते हैं
जैसे अंधेरे के बाद उजाला आता है
दुख के बाद सुख आता है
इंसानों की इस दुनिया को बचाने इंसान ही आता है
गर एक पल के लिए भी खुशी दे किसी को इंसान
कड़वे जहान के बातों को मीठी चाशनी से भर दे इंसान
कौन कहेगा इंसानियत जिंदा नहीं....
कौन कहेगा ईश्वर धरती पर आते नहीं.....
कभी दोस्त बनकर, कभी रखवाला बनकर
मानवता का पाठ सबको पढ़ा ही जाते हैं
हां, इंसान ही इंसानियत निभाते हैं।।
Dr Janki Jha
Assistant Professor, Poet
Cuttack, Odisha
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