****ग़ज़ल****
खुदी में यूं खुद को मिटाने चले हैं।
उन्हें दिल में अपने बसाने चले हैं।।
दुआओं में जिनके लिए मांगी रहमत।
वही आशियाना जलानें चले हैं ।।
मेरा घर जलाया मेरे दोस्तों ने।
वही आग को भी बुझाने चले हैं।।
बगावत तो छेड़ी उन्होंने ही अक्सर।
मगर वो हमें ही सिखाने चलें हैं।।
जो पीछे से खंजर हमारे चलाते।
उन्हें हम गले से लगाने चले हैं।।
जरा तुम सम्भल कर ही रहना सरोज।
छुरी मीठी फिर वो चलाने चलें हैं।।
आर्यावर्ती सरोज "आर्या"
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
Wahhh
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत...ग़ज़ल 👍
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