टोंक/राजस्थान ।
प्रकृति पर्यावरण पर निर्भर है और हम सभी पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर है |
हमारे आसपास जो भी है वह पर्यावरण ही है | हवा ,पानी, आकाश ,झील ,नदी, झरने वन्यजीव, पेड़ पौधे, सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं |
जब हमारी प्रकृति ही पर्यावरण पर निर्भर करती है तो इसकी संरक्षा करना भी हमारा कर्तव्य एवं दायित्व है |
मूल भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित एकमात्र अनुच्छेद 47 था | इस अनुच्छेद के अनुसार
राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर ओषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा |
लेकिन इस अनुच्छेद में वन्य जीव के संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया |
इसके अलावा संविधान में पर्यावरण के संबंध में और कोई उपबंध नहीं था | लेकिन समय के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा की आवश्यकता महसूस की जाने लगी | वन्यजीवों की रक्षा एवं पेड़ पौधों की सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी |
अतः संविधान मैं 42 वा संशोधन 1976 किया गया और एक नया अनुच्छेद 48 (क) जोड़ा गया |
जो यह कहता है कि राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा उसमें संवर्धन और वन व वन्य जीवो की रक्षा के लिए प्रयास करेगा |
इसके साथ ही
42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग 4 क भी जोड़ा गया |
जो कि मूल कर्तव्य से संबंधित है|
इस भाग के अनुच्छेद 51 (क) खंड (छ) में यह कहा गया है कि
"भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, नदी ,झील और वन्य जीव है उसकी रक्षा व समर्थन करें एवं प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें"|
अब यह एक दोहोरी स्थिति थी |
जहां एक और अनुच्छेद 48 (क) पर्यावरण संरक्षण के लिए राज्य को निर्देश देता है वही दूसरी ओर अनुच्छेद 51 (क) का खंड (छ) नागरिकों पर प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए कर्तव्य अधिरोपित करता है |
इन सभी संवैधानिक उपबंध के पश्चात भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नया कानून बनाने की आवश्यकता महसूस की गई | क्योंकि दिन प्रतिदिन वन्यजीवों का अवैध रूप से शिकार एवं उसके मांस एवं खालो का व्यापार बढ़ता ही जा रहा था |
इन सभी संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद भी वन्य जीव के संबंध में अवैध गतिविधियों को रोकना संभव नहीं हो पाया |
अतः इन सभी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया | 2003 में इसे संशोधित किया | इसके पश्चात इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया | इसका उद्देश्य वन्यजीवों के अवैध व्यापार ,अवैध शिकार , मांस व खाल के व्यापार पर रोक लगाना था |
यह कानून जंगली जानवरों पर ही नहीं बल्कि सूचीबद्ध पक्षियों ,पशु, व पौधों पर भी लागू होता है |
इस अधिनियम द्वारा वन्यजीवों को अनुसूचियों में बांटा गया है एवं अनुसूचियों के अनुसार ही दंड व जुर्माने की व्यवस्था की गई है |
इन अनुसूची के अनुसार ही कम एवं अधिक दंड का प्रावधान बताया गया है इन अनुसूची में यह भी बताया गया है कि किन जानवरों का शिकार किया जा सकता है | इस अधिनियम में न्यूनतम सजा 3 वर्ष व अधिकतम 7 वर्ष एवं न्यूनतम जुर्माना ₹10000 एवं अधिकतम 25 लाख रूपए तक है |
अन्य अधिनियमों में प्रावधान-
*भारतीय दंड संहिता की धारा 428-
इस धारा के अनुसार जो कोई ₹10 या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीव जंतु का वध करने विष देने, विकलांगता करने या निरउपयोगी बनाने द्वारा क्षति करेगा , वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा |
*भारतीय दंड संहिता की धारा 429-
इस धारा के अनुसार जो कोई किसी हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भेड़ , सांड ,गाय या बेल को चाहे उसका कोई मूल्य हो या ₹50 या उससे अधिक मूल्य के किसी भी अन्य जीव-जंतुओं का वध करने, विष देने , विकलांग करने या निरउपयोगी बनाने द्वारा क्षति करेगा , वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 5 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा |
*पशू क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960-
इस अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि
कोई भी पशु (मुर्गी सहित) केवल बूचड़खाने में ही काटा जाएगा | बीमार और गर्भधारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा।
इस अधिनियम में पशु को आवारा छोड़ने पर भी दंड का प्रावधान किया गया है |
किसी भी पशु को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना भी दंडनीय अपराध है।
पशुओं को लड़ने के लिये भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना भी दंडनीय अपराध है |
प्रिवेशन ऑफ क्रुएलिटी ऑल एनिमल एक्ट -
इस अधिनियम के अंतर्गत भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिये प्रशिक्षित करना तथा इस्तेमाल करना गैरकानूनी है।
इन सभी प्रावधानों के होने के पश्चात भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए हमें भी आगे आना होगा | क्योंकि हमारी प्रकृति पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर है और हम भी पर्यावरण पर ही निर्भर है| हमें भी जागरूक रहना होगा | जब देश के सभी व्यक्ति वन्य जीव संरक्षण को लेकर जागरूक होंगे तभी वन्य जीवों का संरक्षण संभव है |
डॉ. दिशांत बजाज
सहायक प्रोफेसर विधि - राजस्थान
प्रकृति पर्यावरण पर निर्भर है और हम सभी पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर है |
हमारे आसपास जो भी है वह पर्यावरण ही है | हवा ,पानी, आकाश ,झील ,नदी, झरने वन्यजीव, पेड़ पौधे, सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं |
जब हमारी प्रकृति ही पर्यावरण पर निर्भर करती है तो इसकी संरक्षा करना भी हमारा कर्तव्य एवं दायित्व है |
मूल भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित एकमात्र अनुच्छेद 47 था | इस अनुच्छेद के अनुसार
राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर ओषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा |
लेकिन इस अनुच्छेद में वन्य जीव के संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया |
इसके अलावा संविधान में पर्यावरण के संबंध में और कोई उपबंध नहीं था | लेकिन समय के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा की आवश्यकता महसूस की जाने लगी | वन्यजीवों की रक्षा एवं पेड़ पौधों की सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी |
अतः संविधान मैं 42 वा संशोधन 1976 किया गया और एक नया अनुच्छेद 48 (क) जोड़ा गया |
जो यह कहता है कि राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा उसमें संवर्धन और वन व वन्य जीवो की रक्षा के लिए प्रयास करेगा |
इसके साथ ही
42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग 4 क भी जोड़ा गया |
जो कि मूल कर्तव्य से संबंधित है|
इस भाग के अनुच्छेद 51 (क) खंड (छ) में यह कहा गया है कि
"भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, नदी ,झील और वन्य जीव है उसकी रक्षा व समर्थन करें एवं प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें"|
अब यह एक दोहोरी स्थिति थी |
जहां एक और अनुच्छेद 48 (क) पर्यावरण संरक्षण के लिए राज्य को निर्देश देता है वही दूसरी ओर अनुच्छेद 51 (क) का खंड (छ) नागरिकों पर प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए कर्तव्य अधिरोपित करता है |
इन सभी संवैधानिक उपबंध के पश्चात भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए नया कानून बनाने की आवश्यकता महसूस की गई | क्योंकि दिन प्रतिदिन वन्यजीवों का अवैध रूप से शिकार एवं उसके मांस एवं खालो का व्यापार बढ़ता ही जा रहा था |
इन सभी संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद भी वन्य जीव के संबंध में अवैध गतिविधियों को रोकना संभव नहीं हो पाया |
अतः इन सभी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया | 2003 में इसे संशोधित किया | इसके पश्चात इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया | इसका उद्देश्य वन्यजीवों के अवैध व्यापार ,अवैध शिकार , मांस व खाल के व्यापार पर रोक लगाना था |
यह कानून जंगली जानवरों पर ही नहीं बल्कि सूचीबद्ध पक्षियों ,पशु, व पौधों पर भी लागू होता है |
इस अधिनियम द्वारा वन्यजीवों को अनुसूचियों में बांटा गया है एवं अनुसूचियों के अनुसार ही दंड व जुर्माने की व्यवस्था की गई है |
इन अनुसूची के अनुसार ही कम एवं अधिक दंड का प्रावधान बताया गया है इन अनुसूची में यह भी बताया गया है कि किन जानवरों का शिकार किया जा सकता है | इस अधिनियम में न्यूनतम सजा 3 वर्ष व अधिकतम 7 वर्ष एवं न्यूनतम जुर्माना ₹10000 एवं अधिकतम 25 लाख रूपए तक है |
अन्य अधिनियमों में प्रावधान-
*भारतीय दंड संहिता की धारा 428-
इस धारा के अनुसार जो कोई ₹10 या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीव जंतु का वध करने विष देने, विकलांगता करने या निरउपयोगी बनाने द्वारा क्षति करेगा , वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा |
*भारतीय दंड संहिता की धारा 429-
इस धारा के अनुसार जो कोई किसी हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भेड़ , सांड ,गाय या बेल को चाहे उसका कोई मूल्य हो या ₹50 या उससे अधिक मूल्य के किसी भी अन्य जीव-जंतुओं का वध करने, विष देने , विकलांग करने या निरउपयोगी बनाने द्वारा क्षति करेगा , वह दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 5 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा |
*पशू क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960-
इस अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि
कोई भी पशु (मुर्गी सहित) केवल बूचड़खाने में ही काटा जाएगा | बीमार और गर्भधारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा।
इस अधिनियम में पशु को आवारा छोड़ने पर भी दंड का प्रावधान किया गया है |
किसी भी पशु को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना भी दंडनीय अपराध है।
पशुओं को लड़ने के लिये भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना भी दंडनीय अपराध है |
प्रिवेशन ऑफ क्रुएलिटी ऑल एनिमल एक्ट -
इस अधिनियम के अंतर्गत भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिये प्रशिक्षित करना तथा इस्तेमाल करना गैरकानूनी है।
इन सभी प्रावधानों के होने के पश्चात भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए हमें भी आगे आना होगा | क्योंकि हमारी प्रकृति पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर है और हम भी पर्यावरण पर ही निर्भर है| हमें भी जागरूक रहना होगा | जब देश के सभी व्यक्ति वन्य जीव संरक्षण को लेकर जागरूक होंगे तभी वन्य जीवों का संरक्षण संभव है |
डॉ. दिशांत बजाज
सहायक प्रोफेसर विधि - राजस्थान
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