- दानवीर कर्ण -
सूर्य पुत्र होकर भी तू
सूत पुत्र कहलाया
बिनब्याही माँ ने
लाज बचाने को
सरिता में बहाया
राधा के प्यार में पला
परशुराम से पाई शिक्षा
गुरू सेवा में रक्त स्वयं बहाया
प्रतिफल में भी तूने श्राप ही पाया
अपमानित हो जग से तूने
दुर्योधन का साथ पाया
ऋण मित्रता का चुकाने को
अधर्म का साथ निभाया
वीर,धीर, दानी था तू पर
अपमानित ही रहा
किसी और के कर्मो की
सजा झेलता तू रहा
ज्येष्ठ पुत्र होकर भी पांडु का
अपना अधिकार कभी न पाया
वाणी के विषैले बाणों ने
तेरा उपहास उड़ाया
उनसे आहत होकर ही
तूने साथ अधर्म का निभाया
मित्र के लिए युद्ध भूमि में
वीरता से अपने प्राण को गवांया ।
कवित्री -
गरिमा राकेश गौतम ।
कोटा, राजस्थान ।
सूर्य पुत्र होकर भी तू
सूत पुत्र कहलाया
बिनब्याही माँ ने
लाज बचाने को
सरिता में बहाया
राधा के प्यार में पला
परशुराम से पाई शिक्षा
गुरू सेवा में रक्त स्वयं बहाया
प्रतिफल में भी तूने श्राप ही पाया
अपमानित हो जग से तूने
दुर्योधन का साथ पाया
ऋण मित्रता का चुकाने को
अधर्म का साथ निभाया
वीर,धीर, दानी था तू पर
अपमानित ही रहा
किसी और के कर्मो की
सजा झेलता तू रहा
ज्येष्ठ पुत्र होकर भी पांडु का
अपना अधिकार कभी न पाया
वाणी के विषैले बाणों ने
तेरा उपहास उड़ाया
उनसे आहत होकर ही
तूने साथ अधर्म का निभाया
मित्र के लिए युद्ध भूमि में
वीरता से अपने प्राण को गवांया ।
कवित्री -
गरिमा राकेश गौतम ।
कोटा, राजस्थान ।
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