अपेक्षा व्यास - ग़ज़ल

 ग़ज़ल 

इश़्क मरहम आप बनने दो इसे।

हैं वफा कायम   सँवरने दो इसे ।।


चाँदनी सा नूर निकला राह से ,

दिल धड़कता है धड़कने दो इसे।।


मजहबी दीवार आँगन मे खड़ी,

आज गिरती है तो गिरने दो इसे।।


क्यूँ हुये वो बेरहम  ना जानती ,

बस मुहब्बत आप  करने दो इसे ।।


जिदंगी तुम से शिकायत ये रही ,

वक्त बदले तो बदलने दो इसे ।।


ना तलब बुझती सनम मधुमास में ,

इक नया सा राग सुनने दो इसे ।।


क्यूँ भला अब ये  अपेक्षा चाहती ,

प्रेम -पथ पे साथ बढ़ने  दो इसे ।।

अपेक्षा व्यास

भीलवाड़ा राज.

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Milan Tomic

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