ग़ज़ल
इश़्क मरहम आप बनने दो इसे।
हैं वफा कायम सँवरने दो इसे ।।
चाँदनी सा नूर निकला राह से ,
दिल धड़कता है धड़कने दो इसे।।
मजहबी दीवार आँगन मे खड़ी,
आज गिरती है तो गिरने दो इसे।।
क्यूँ हुये वो बेरहम ना जानती ,
बस मुहब्बत आप करने दो इसे ।।
जिदंगी तुम से शिकायत ये रही ,
वक्त बदले तो बदलने दो इसे ।।
ना तलब बुझती सनम मधुमास में ,
इक नया सा राग सुनने दो इसे ।।
क्यूँ भला अब ये अपेक्षा चाहती ,
प्रेम -पथ पे साथ बढ़ने दो इसे ।।
अपेक्षा व्यास
भीलवाड़ा राज.
Awesome 🔥🔥
ReplyDeleteअद्भुत
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