करुणा कलिका - गजल

 1222  1222  1222  1222

   ( एक छोटी सी कोशिश)

                    ***   (गज़ल)    ***

चला था जो सभी को साथ ले कर कारवां के साथ 

नहीं मालूम क्यों वो शख्स ही तन्हा निकलता है


कहें क्या हम उन्हें जो कर रहें हैं बात छलिया सी

बड़ किरदार है उनका मगर छोटा निकलता है


तरस आता है ऐसे शख्स पर दरिया बहा जो खुद 

किनारे पर चला जाता मगर प्यासा निकलता है


मुहब्बत में कभी जो दिल लगे तो दिल्लगी करना

नहीं तो सोच लो कोई भी ना अपना निकलता है


दिया है मशवरा हमने तुम्हें यह बात तुम सुन लो

सफर ये जिन्दगी की ना कभी सीधा निकलता है

लेखिका -

करुणा कलिका

झारखंड

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Milan Tomic

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