आपस में हैं बोल रहें - रेशमा त्रिपाठी

 शीर्षक – ‘आपस में हैं बोल रहें '


“ कल – कल नदियाॅ॑ ,झरने आपस में थे बोल रहें

 नित हम क्यों? सूख रहें ।

तेज हमारा नष्ट हो रहा, अस्तित्व लगा हैं मिटने

नित हम क्यों ? सूख रहें  ।

सूर्य उगलता ताप था कल भी

पर ऐसी तपन ना थी

ऐसा क्या ? कर रहा हैं मानव 

जो नित हम सुख रहें  ।

ये सब बातें पेड़ सुन रहा ,फिर उसने हैं बोला

हें! नदियां ए झरने

आस्तित्व तुम्हारा मुझसे हैं

और मानव मुझको हैं नित काट रहें 

तुम क्या कर सकती हो ? दर्द तुम्हारा मुझसे कम हैं

मैं तो तुमसे ही नित उगता हूॅ॑ 

  मुझसे मोह खत्म हो रहा हैं अब 

लोगों का थोड़ा –थोड़ा 

कल तक तो तुम ही बिकती थी

अब मैं भी बेचा जाता हूॅ॑

कुबेरपति मानव में अब ,ज्ञान ज्योति की ‘लौं ' हैं, नहीं

फिर कैसे देखें अन्धकार ,जो रोशनी में हैं फैल रहा 

ये इंसान बना मालिक हैं सबका 

बैठा – बैठा हैं बेच रहा

तुम क्या ?

हम क्या?

वह तो खुद को भी, नित थोड़ा – थोड़ा हैं बेच रहा

आस्तित्व तुम्हारा कल भी था

आस्तित्व तुम्हारा आज भी हैं

आगे भी आस्तित्व तुम्हारा ही होगा 

पर उस वक़्त करेगा क्या इंसान 

जब हम पूरे कट जायेंगें 

सोच रहा हूॅ॑ !

क्या ?

मानव भी ऐसे ही, सूख रहा 

जैसे तुम नित सूख रही 

कल – कल करती नदियाॅ॑ ए झरने

 ये सब थे आपस में बोल रहें 

नित हम क्यों? सूख रहें।। "


 दोहा– ‘ पेड़ बचाओ हें!मानव तुम,आस्तित्व तुम्हारा खतरे में ।

         जीवित रहना चाहते हो,तो नित पेड़ लगाओ एक नए ।।'

 

            रेशमा त्रिपाठी (पीएचडी शोधार्थी)

                     प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

SHARE

Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
  • Image
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर एक्सप्रेस न्यूज भारत चैनल का आगाज़

इस अवसर पर क्राइम कंट्रोल ब्यूरो मीडिया टीम अपने सामाजिक हित के उल्लेखनीय कार्यों हेतु सम्मानित जयपुर ( भानु राज ) राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर ज...

_