** - दुनिया अजब तमाशा -**
दुनिया अजब तमाशा हैं, अनगिनत अभिलाषा हैं,
"नित नए तमाशों/ में हुकुम का इक्का हाथों में।
"बात पते कि बाक़ी हैं/ दुनिया भूखी प्यासी हैं।।
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"तेरा-मेरा मेरा-मेरा/इसलिए दुनिया बनावटी हैं।
"सुबह शाम शतरंज चली/रात को आंखें प्यासी हैं।।
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"किताबे पढ़ने से होगा क्या/ असल जिंदगी बाकी हैं। "चहूं और जब शोर मचे/ तभी दुनिया जागी हैं।।
"राम-रहीम का भेद बताकर/ लंगर खाने सब आ जाएं।
"बड़ी-बड़ी बातें सब करते/ काम के वक्त देखे ना जाएं।।
"सुबह सवेरे जपते हैं नाम/ रात को खूंखार हो जाएं।
"तन को अपने रोज नहलाएं/
मन की मैल देख ना पाए।।
अजब-गजब दुनिया का मेला/
मेले में सब खो जाएं।
अपनी जात तो ढूंढ ना पाए/ औरों की बताते जाएं।।
काम क्रोध को छोड़ ना पाए/
सत्संग की बातें बतलाएं।
अपने पाप देख ना पाए/दूजों के पाप गिनवाएं।।
लेखिका -
(सीमा कपूर)
उत्तर प्रदेश,मेरठ
Thanks sir
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