कंकाल - नृत्य
सन्नाटा-- सन्नाटा--सन्नाटा
चारों ओर है गहन सन्नाटा
पूरी पृथ्वी को लीलने को आतुर यह सन्नाटा
सन्नाटे को चीरती हुई यह शोर कैसा है देखो-
देखो कब्र से निकल आए हैं सारे नर-कंकाल
दिशाएँ थर्रा उठी है उसके क्रंदन से देखो
भूख-भूख-भूख कहकर
क्रुद्ध-स्वर में सभी चिल्ला रहे हैं।
जिंदगी जिसकी भूख थी
मौत की वजह भी भूख थी
देखो-देखो नर-कंकाल ने अब अपना स्वर
बदला है
रोटी-रोटी-रोटी कहकर
स्वर काँप उठा है उसका
आँखें उसकी दहक उठी है
हड्डी का ढाँचामात्र वो
भुजाएँ उसकी फ़ड़क उठी है।
जीवन-भर जो कर न सका
आज मौत मेरी प्रतिशोध लेगी कहकर
अट्टहास करता समूह में नाचने लगा
नर-कंकाल
वंदना प्राशरवंदना पराशर

सुंदर
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