हम तो युँ ही झांक लेते थे, लोगो की ज़िन्दगी मे
शायद उन्हे हमसे बेहतर जीने का सलीका आता हो
दखलंदाजी की कोई जुर्रत नहीं हमारी
शीशे सी साफ, नियत है हमारी
इंसानियत का रिश्ता निभा ए हुए चलते हैं
बस हँसते और हँसा ए चलते हैं
युँ तो आदत नहीं थी बेबाक बातों की
फिर सोचा क्यो बे मतलब ही दर्द छुपाए हुए चलते हैं
स्वरचित
दिल प्रीत "दीपाली"

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