इंसान के शौंक
वाह रे !!!! इंसान....???
बदलते परिवेश में,
क्या-क्या शौक हो गए।
गरीब के हिस्से में "गाय"
और अमीरों के "कुत्ते "
पालने के शौक हो गए।
वाह रे !!!! इंसान.....???
बदलते परिवेश में,
क्या-क्या शौक हो गए।
आधुनिकता - दिखावे का,
ऐसा......... नशा चढ़ा।
गाय दूध दे कर भी,
बासी रोटी और कचरे के,
ढेर पर चर रही।
कुत्ते के लिए अच्छे-अच्छे बिस्किट और मांस-मछली की भेंटे चढ रही।
वाह रे.!!!!..... इंसान ??? बदलते परिवेश में,
क्या-क्या शौक हो गए।
जरा सोचो.......
जिंदगी के सच,
अंधविश्वास....... ¿¿¿
कहकर नहीं छूट जाएंगे।
सच को ना मानने से,
सच के मायने नहीं बदल जाएंगे।
गाय को "माता" का दर्जा
जब तक ना दे पाओगे।
"कुत्ता "बेचारा तो.. नीरीह
वफादार जीव है।
तुम उससे नीचे स्थान पाओगे।
प्रीति शर्मा असीम
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
उक्त रचना नितान्त मौलिक और अप्रकाशित है।

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