कंकाल नृत्य - वंदना प्राशर

कंकाल - नृत्य

सन्नाटा-- सन्नाटा--सन्नाटा

चारों ओर है गहन सन्नाटा

पूरी पृथ्वी को लीलने को आतुर यह सन्नाटा

सन्नाटे को चीरती हुई यह शोर कैसा है देखो-

देखो कब्र से निकल आए हैं सारे नर-कंकाल

दिशाएँ थर्रा उठी है उसके क्रंदन से देखो

भूख-भूख-भूख कहकर

क्रुद्ध-स्वर में सभी चिल्ला रहे हैं।

जिंदगी जिसकी भूख थी

मौत की वजह भी भूख थी

देखो-देखो नर-कंकाल ने अब अपना स्वर 

बदला है

रोटी-रोटी-रोटी कहकर

स्वर काँप उठा है उसका

आँखें उसकी दहक उठी है

हड्डी का ढाँचामात्र वो

भुजाएँ उसकी फ़ड़क उठी है।

जीवन-भर जो कर न सका

आज मौत मेरी प्रतिशोध लेगी कहकर 

अट्टहास करता समूह में नाचने लगा 

नर-कंकाल 

वंदना प्राशर
 लेखिका ,अलीगढ़, उत्तर प्रदेश


                                          वंदना पराशर

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Milan Tomic

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