Devaluation of highest thoughts
आजतक हमने सुना है, पढ़ा है, या कहा है की रुपये मे गिरावट आयी डॉलर, यूरो की कीमत बढ़ गयी है, दिराम के रेट्स बढ़ गए है जो भी देश की currancy है उसके साथ हम अपने रूपये को जोड़ते है, तुलना करते है ओर
अपने रूपये का मूल्यांकन करते है ओर मूल्य मे कमी महसूस करते है.
1947 में भारत की आजादी के बाद से भारतीय रूपये का अवमूल्यन हुआ है| 1947 में विनिमय दर 1USD = 1INR था, लेकिन आज आपको एक अमेरिकी डॉलर खरीदने के लिए 74 रुपये खर्च करने पड़ते हैं| मुद्रा के अवमूल्यन का अर्थ “घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी होना, जबकि आंतरिक मूल्य का स्थिर रहना” है।
मुद्रा के अवमूल्यन का अर्थ तो हमने जान लिया
अब हम रूपये के स्थान पे अपने विचारों को रखकर मूल्यांकन करते है तो अर्थ बिलकुल विपरीत निकलता है
स्वविचार का स्वदेश मे ही अवमूल्यन, स्वदेश मे ही खुदके विचारों मे गिरावट..
जी हा बात थोड़ी समझने मे आसान पर स्वीकार्य मे कठिन है, मुश्किल है, जिस तरहा हम रुपये को बार बार तोलते है उसका दूसरे देश के साथ तुलना करके मूल्यांकन करते है ठीक उसी तरहा हम अपनी सोच, अपने विचारों को तराजू मे तोले तो स्वार्थ, पक्षपात, कुटिल नीति, भ्रस्टाचार, राजनीती, पाखंड, अविवेकता
का पलड़ा भारी हुआ है, नैतिक आचरण मे भारी गिरावट आयी हुई है, लोगो के परस्पर व्यवहार, परस्पर फ़र्ज, परस्पर परोपकारी भावनाओं का संक्षेप होगया है
जितनी रुपये की देश को अनिवार्यता है उतनी ही उच्चतम विचारों की देश को अनिवार्यता है, आखिर विचार्रो से ही देश को प्राधान्यता मिलती है, हमारे देश की शांति, सभ्यता, स्वास्थ्य, सहकार भावनाओं का आदान प्रदान, सहकार्य रचना, ओर हा... संस्कार.. !!! सर्व गुणधर्म हमारे विचारों की उपज है , विचारों की उपज से ही देश मे अच्छे या बुरे कर्म स्थापित होते है, देश मे इतने क्राइम्स क्यों हो रहे है, चोरी, लूटफाट , Rapes, डैकेती, खून क्यों हो रहे है, अख़बार मे हर रोज एक नयी खबर होती है, Rape हुआ, मर्डर हुआ, लूटफाट हुई, देश के हर कोने कोने मे ये क्राइम क्यू हो रहे है... बेशक़ इसका एक ही कारण है.
" उच्चतम विचारों का अवमूल्यन " संस्कारो का अवमूल्यन, नैतिकता का अवमूल्यन, निस्वार्थ भावनाओं का अवमूल्यन, परोपकारी सोच का अवमूल्यन.. दया, करुणा, संवेदनशीलता का अवमूल्यन... मानवता का अवमूल्यन.. जिस देश का आधार स्तंभ ही इतना खोखला हो, जिसकी नीव ही पूरी खोखली हो गयी हो, वहां का रूपया तो गिरेगा ही..हम अपने देश की बेटी, बहु का अगर रक्षण नहीं कर पाते है, उसकी गरिमा का मान नहीं रख पाते है तो हम मे ये कुशलता ही नहीं हमें ये हक़ ही नहीं की हम लक्ष्मी को प्राप्त करें क्योंकि हक़ तभी होता है जब हम उनके प्रति हमारी नैतिक, निस्वार्थ फ़र्ज बजाये.. हक़ जताने से पहले कुशलता प्राप्त होनी जरुरी है.. मानवी इतना स्वार्थी होगया है की रुपये को खींच रहा है जब की नैतिक मूल्यों खुद से वंचित हो रहे है, लेकिन उसका उन्हें रती भर भी अफ़सोस नहीं है..
अंत मे चंद पंक्तिया लिख रही हु...
लिखें कोरे कागज़ पे
कही हिसाब बेहिसाब
घांटे मे रहा हर बखत मेरा हिसाब
खन खन रुपया खनकता गया.
आचरण मे सदा रणकता गया
छूटे हाथोसे कही हाथ
सम्बन्धो से बिछड़ा मेरा साथ
रूपया गिनते गिनते हाथ रुका ही नहीं
पीछे मुड़के अपनों को रोका ही नहीं
अन्तः मे सब वीरान हुआ
साँसो का भी विराम हुआ
खनकते रहे गए सिक्के
टकराके खुद से ही
सन्नाटे मे शोर बड़ा कर्कश हुआ
एक एहसास

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