नवंबर माह...
जैसे ढलती हुई शाम
हाथों से लुढ़कता जाम
जैसे समय सीमा के बाद भी
कुछ अधूरा रह गया काम
दीवाली के दिए सा जलता
हल्की ठंड में नंगे पाँव टहलता
कुछ खोने के डर से सिहरता
मुठ्ठी से रेत सा फिसलता
दबे पांव निकलने को आतुर
किसी तीज-त्यौहार सा व्याकुल
मौसम सर्द करता उत्साह
मगर मन जीवित रखता चाह
बुरे अनुभवों के गमन का
उगते सूर्य के आगमन का
कुछ - कुछ
किसी घर की रौनक
बिटिया के विदा होने जैसा
पति के घर को रोशन
करने को आमदा होने जैसा
नवंबर माह ।
लेखिका-
अर्चना ( खुराफ़ाती )

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