उम्र ढल रही है तो क्या ..?
सपनों को फिर भी जिंदा रखिए
पंख हो गए कमजोर तो क्या …?
उड़ान का हौसला रखिए ...
नहीं मिले सातों रंग तो क्या...?
एक रंग तो अपना रखिए
नहीं पा सके ये दुनिया तो क्या..?
खुद का खुद से तो वास्ता रखिए...
आंख में आंसू है तो क्या..?
लबों पर मुस्कुराहट रखिए
है दुखों की धुंध तो क्या...?
मन में धूप का टुकड़ा रखिए...
तम की अमावस छाई हो तो क्या ...?
उम्मीद की शमा जलाए रखिए
रास्ते मुश्किलों भरे हैं तो क्या
मंजिल को दिल में बसाए रखिए...
जिंदगी में रह गई
कोई ना कोई कमी तो क्या?
इतना कुछ जो मिला है
उसका तो शुक्रिया रखिए.....
लेखिका-
डॉ सुनीता लूथरा
मौलिक एवं स्वरचित

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