सब ऋतु का अपना रंग
अपना राग अपना तरंग ।
बसंत के है ठाठ निराले
मन मयूर मगन मतवाले
मधुर श्रृंगार बेला बसंत
कोकिल युगल गाए रसवंत
मद्धिम मादकता महका अंग
अपना राग अपना तरंग
सब ऋतुओं का अपना रंग ।
मन मुग्ध मंद -मंद मुस्काएं
प्रकृति तेजोमय हो जाएं
शीतल सुगंधित चलें बयार
डालियां भी लदी अपार
तितलियां औ रसपान प्रसंग
अपना राग अपना तरंग
सब ऋतुओं का अपना रंग ।
उमंग उल्लास मन बौराएं
मधुर गीत मौसम गाएं
नव वधु भी नव शृंगार करें
थाप मृदंग संचार भरे
चित चितवन करें मोहभंग
अपना राग अपना तरंग
सब ऋतुओं का अपना रंग ।।
लेखिका -
सुनीता जोहरी,
वाराणसी, उत्तर प्रदेश
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