मेरठ ।
उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देशानुसार मेरठ के कमिश्नरी पार्क में महिला घेरा कार्यक्रम हुआ । जिसमें
महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया सरोजिनी नायडू जयंती एवं राष्ट्रीय महिला दिवस’ की सबको शुभकामनाएँ दी
समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कहा कि आज प्रदेश भर में महिलाओं की सुरक्षा, मान-सम्मान, बेरोज़गारी, शैक्षिक क्षेत्र की समस्याओं व अन्य मुद्दों बात की गई।
आज सरोजिनी नायडू के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया गया जिसमें महिला घेरा कार्यक्रम रखा गया ।वहीं भारतीय जनता पार्टी की गलत नीतियों के खिलाफ बढ़ती महंगाई के खिलाफ, बढ़ते बलात्कार के खिलाफ, रसोई गैस महंगाई के खिलाफ एवं बेरोजगारी के खिलाफ महिला सशक्तिकरण ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला ।
वरिष्ठ सपा नेत्री नेहा गौड ने सरोजिनी नायडू के बारे में याद दिलाया कि भारत कोकिला कहलाने वाली सरोजिनी नायडू आजादी के बाद वो पहली महिला राज्यपाल भी घोषित हुईं। सरोजिनी नायडू एक मशहूर कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी और अपने दौर की महान वक्ता भी थीं। उन्हें भारत कोकिला के नाम से भी जाना जाता था।
अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण १९२५ में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और १९३२ में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। श्रीमती एनी बेसेन्ट की प्रिय मित्र और गाँधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। २ मार्च १९४९ को उनका देहांत हुआ। १३ फरवरी १९६४ को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में १५ नए पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया।
स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद, देश को उस लक्ष्य तक पहुँचाने वाले नेताओं के सामने अब दूसरा ही कार्य था। आज तक उन्होंने संघर्ष किया था। किन्तु अब राष्ट्र निर्माण का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर आ गया। कुछ नेताओं को सरकारी तंत्र और प्रशासन में नौकरी दे दी गई थी। उनमें सरोजिनी नायडू भी एक थीं। उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। वह विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत था। उस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, 'मैं अपने को 'क़ैद कर दिये गये जंगल के पक्षी' की तरह अनुभव कर रही हूँ।' लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा को टाल न सकीं जिनके प्रति उनके मन में गहन प्रेम व स्नेह था। इसलिए वह लखनऊ में जाकर बस गईं और वहाँ सौजन्य और गौरवपूर्ण व्यवहार के द्वारा अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया।
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