पर्यावरण संरक्षिका डॉ कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी जी नें पर्यावरण संदेश देते हुए भाई दूज की पूजा प्राकृतिक वातावरण में सम्पन्न की

लखनऊ - आरती मिश्रा ।

लगभग आठ नौ वर्ष हुए हैं  शिव मंदिर स्थापित हुए , आज यहां  लखनऊ में पारा ( नरपत खेड़ा) के पास एक शिव मंदिर की स्थापना एक महान विभूति द्वारा की गई, देखते ही देखते यह मंदिर सुरम्य वातावरण और फल फूल के घनें वृक्षों से आच्छादित हो इस स्थान का भव्य दिव्य मंदिर बन गया , यहां शिवलिंग की स्थापना श्री सतीश कुमार जी नें की और श्री राजेश कुमार जी के देख रेख में यहां श्री अजय श्रीवास्तव नाम के एक समाज सेवक जो महा रक्तदानी भी हैं और समाज की भलाई हेतु अनेक प्रकार के सराहनीय कार्य के लिए जाने जाते हैं, औषधीय पौधों , फूलों, और लाभकारी जड़ी बूटियों व तरह तरह के फलों मौसमी फलों के पेड़ और फूलों से लदी लतायें झूम झूम कर शिव जाप कर रहीं नव निर्मित भवनों के बीच घिरा यह इस इलाके का एक मात्र  शिवालय है जहां पर दूर दूर से कालोनियों व बस्ती के लोग नियम से पूजा-अर्चना करते हैं और हिंदूओं के सभी त्योहार जैसे छट पूजा, गोवर्धन पूजा, सुंदर काण्ड, हवन, यज्ञ , दशहरे पर रावण दहन व  होलिका दहन व सांस्कृतिक कार्यक्रम भी यहीं पर यहां के निवासियों द्वारा मनाये जाते हैं , इन सभी पारंपरिक त्योहारों की तैयारी और मंदिर का रखरखाव, और उसमें पर्यावरण व प्राकृतिक वातावरण बनाये रखनें का सारा प्रबंध आदरणीय श्री राजेश जी के कंधों पर है मंदिर में भव्य मूर्तियां, व मां दुर्गा , बजरंगबलीजी , शिव परिवार, व अन्य देवी देवताओं को स्थापित किया गया है, मंदिर में हर श्रृंगार, बरगद , पीपल आम ,बेर,केला  ,शरीफा ,खट्टा नींबू मीठा नीबू ,शहजन , अमरूद, पपीता ,संतरा , नारंगी,नीम , मीठी नीम, शम्मी , कटहल ,  कमरख वगेरह व कंडैल , गुलाब , रातरानीं , चम्पा ,बेला , परिजात, व अन्य औषधीय गुण कारी पौधे लगाए गए हैं, जो मंदिर की सुंदरता और पवित्रता को बढ़ाने व ध्यान व पूजा के लिए साधक को अच्छा वातावरण उपलब्ध कराते हैं,कई   प्रकार की सब्जियां जैसे लौकी नेनुआ भी लगे हैं जो स्थानीय जरूरत मंद लोगों के घर सब्जी का काम करती हैं, तुलसी की सुगंध और गुलाब की महक इस  मंदिर कको आलौकिकता प्रदान करते हैं , यहां के निवासियों की आस्था और विश्वास व भक्ति से यहां पर दिव्य ईश्वरीय शक्ति का अहसास होता है ,  यहां  मंदिर का एक रक्षक  हिंचलाल नामक व्यक्तिभी  है जो मंदिर की सफाई,  सुरक्षा और यहां की  पहरेदारी करता है , और मंदिर में होने वाली हर गतिविधि पर पैनीं नजर रखता है ताकि मंदिर की भव्यता दिव्यता बनीं रहे , मंदिर के प्रांगण में स्वच्छ पेयजल, और बच्चों के लिए झूले की भी व्यवस्था है , प्रसाद वगेरह त्योहारों पर अधिक मात्रा में आ जानें पर गरीबों में बांटा जाता है नवरात्रि में लोग यहां भंडारा लगाते हैं , बुढ़वा मंगल व छट पर इस मंदिर की  छटा ही निराली रहती है , यहां किसी से एक भी पैसा चंदा  स्वरूप में नहीं लिया जाता  उत्सवों में इसकी व्यवस्था श्री राजेश जी स्वयं और मंदिर में वर्ष भर चढावे के पैसे से की जाती है, यहां सभी कालोनियों के लोगों के लिए स्वतंत्रता है वो अपनें संस्कार जैसे मुंडन , छेदन , व विवाह के समय गौर गणेश पूजन वगेरह करवाते हैं| 

यूं तो मंदिर निर्माण की प्रारंभिक अवस्था को पार कर स्थापित हो गया है और समय समय पर श्रद्धालु स्वेच्छा से यहां पर दानदेते हैं ताकि मंदिर और सुदृढ़ हो सके , इस श्री राजेश जी के रिश्तेदार भी जो विभिन्न शहरों में रहते हैं यथाशक्ति दान धर्म व सहयोग करते रहते हैं , पास के एक पुरोहित ( पंडित) जी भी दैनिक पूजन हेतु उपस्थित रहनें लगे हैं, जो मंदिर में सुबह शाम पूजा करवाते हैं, यहां हमारे धार्मिक  त्यौहार मनाने, व घनीं आबादी में ईश्वर के घर में शांत चित्त होकर बैठनें पर जो आत्मनुभूति व स्वयं का साक्षात्कार होता है वह आज की भागदौड़ और लालच भरी जिंदगी में सुख शांति हेतु एक दिव्यानुभूति  करता है , मन शांत और निश्चिंत हो जाता है| वास्तव में इतनें घनें इलाके  में "ईश्वर का यह घर " अपनत्व का बोध कराता है| इसके लिए इस मंदिर के संरक्षक गण और मंदिर के व्यवस्थापक बधाई के पात्र हैं| 

मेरे निवास स्थान से चंद कदमों की दूरी होने की वजह से अकसर मैं भी यहां पूजा अर्चना हेतु आती रहती हूं, गमलों में लगाये गये फल के पौधे, व अन्य पेड़ों को यहां पर व्यवस्थापक जी की मदद से लगवा कर मैंने भी अपना तुच्छ योगदान प्रभु के घर को सजाने में किया है , बचपन से ही मां को देखा था अकसर वो फल के बीजों को हम बच्चों से या कभी कभी स्वयं ही वो घर की बगिया में लगा देती थीं और पौधे निकलकर जब थोड़े बड़े हो जाते थे तो गांव से यदि कोई बाबा या चाचा वगेरह आ जाते थे तो उनके द्वारा भिजवा देती थीं,गांव में आम , अमरूद या अन्य गुणकारी पौधे भिजवा देतीं थीं जिनमें से कई तो बाग का हिस्सा  बन लोगों को तृप्त कर रहे और गांव वाले बहुरानी के हाथों के रोपे आम  व अन्य फल के पेड़ उनकी यादों को ग्रामवासियों के जहन में बनाये रखे हैं| मां का यही धर्म उनकी बेटी होने के नाते मुझे भी मिला है मैंगो शेक बनाने के लिए दशहरी आम की गुठलियों को यूं ही मग्घे में ही उगाकर मेजा प्रयागराज में बड़ी ननद जी को  कई वर्षों पहले भेंट कर  आज दशहरी आम की बगिया बड़ी हो रही जब यह सुनती हूं तो बड़ा सुकून मिलता है, एक वृक्ष सौ पुत्रों के बराबर का कर्तव्य निभाते हैं , *एकवृक्ष सौ पुत्र समाना ** |  आज भाई दूज की पूजा अर्चना के दौरान मंदिर में पूर्व में लगाये पौधों को देखा निहारा और दुलारा,इस पुनीत कार्य में कानून विद् , फैशन डिजाइनर,सुश्री पल्लवी जी भी साथ रहीं, यह सत्य है कि पौधे भी आपसे बात करते हैं , आपसे दुलार व ममत्व चाहते हैं, आपके अकेले पन के साथी  ये वृक्ष लतायें  सभी होते हैं , बस इन्हें जरूरत है आपके देखभाल और आपके द्वारा दिये गये पानीं और खाद की , तो देखिए ये कैसे आपकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन आपके दुख सुख बांटने में मदद करते हैं और पुराणों में तो यह भी वर्णित है कि आप पर आती आपदा को यह स्वयं पर ले आपकी हर संभव सुरक्षा करते हैं , बस जरूरत है हमें पर्यावरण मित्र बननें की |

डॉ कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ, पर्यावरण मित्र मंडल संरक्षिका मेजा प्रयाग राज

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Milan Tomic

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