आज कि शिक्षा व्यावस्था औऱ पलको के जेब पर पड़ती मार शिक्षा का व्यवसायीकरण व बदलते स्वारूप पर गलीज़ की रचना।

  नरसिंहपुर -बृजेश रजक ।

कविता

             महंगी शिक्षा

 क्यों ऊंचे रखते रेट हो, क्यों हमें  पटकनी देते हो 

 गरीब ललक कर आस से पूछें

 फीस बड़ी सुन कान से मूँदे

चल फिर कर शालाएं सूंघें

फसे हो जो घुड़वा से कूदें

चाह तो बच्चे की पढ़ने की

पर आप उस्तरा टेत हो

क्यो हमें पटकनी देत हो...

 भव्य इमारत नहीं जरूरी मार्बल झड़ना क्या मजबूरी महंगे रंग दिखावट कोरी वैसे भी होशियारी पूरी क्यों तड़क-भड़क का लेते हो क्यों हमें पटकने देते हो.

फीस को  हाफ किया जा सकता है दिल से काम लिया जा सकता है शिक्षा दान दिया जा सकता है छुपा नहीं है सभी जानते टीचर को का देत हो क्यों हमें पटकनी देते हो...

शिक्षा कोई व्यापार नहीं है फिर लोभ का पारावार नहीं है जानो अपने उस्तरे में धार नहीं है ज्यादा फर्क नहीं पड़ने का वैसे भी तुम सेठ हो क्यों हमें पटकनी देते हो....

 कविता वही जो सच लग जाए सुनने वालों में धून भर जाए गलीज क्यों आफत लेते हो क्यों हमें पटकनी देते हो।                  

       

        
            गोविंद गलीज़

          लेखक -

                  (( नरसिंहपुर, राजस्थान ))


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Milan Tomic

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