मोदीनगर/गाजियाबाद - सविता शर्मा ।
आज महाराजा सूरजमल अखाड़ा गाँव रोरी मे शस्त्र पूजन कार्यक्रम वैदिक रीति से मनाया गया। सतेन्द्र पंवार ने सर्व प्रथम वेद मन्त्रों द्वारा अग्निहोत्री यज्ञ किया गया । यज्ञ उपरांत शस्त्रों का फूल मालाओं से श्रंगार किया गया। फिर शस्त्रों पर गंगाजल छिड़का गया व सभी शस्त्रों पर कलावा बांधा गया और शस्त्रों पर रोली व हल्दी से तिलक किया गया।
शस्त्र पूजन के उपरांत साधु संतों व वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये! बाबा परमेन्द्र आर्य ने कहा वीरों और वीरांगनाओं का सबसे बड़ा पर्व शस्त्र पूजन ही होता है।आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का विधान है। 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ परम पिता परमेश्वर का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन किया जाता है । विजयादशमी के शुभ अवसर पर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा अवश्य की जानी चाहिए। भारतीय सेना भी विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजन करती है! शस्त्रों के साथ रेडियो सैट, गाडीयों व अन्य युद्ध मे सहायक उपकरणों की भी पूजा की जाती है। रामचन्द्र जी ने भी लंका पर चढाई से पहले शस्त्र पूजन किया था। शस्त्र पुजा करने का सबसे बड़ा लाभ ये है कि योद्धा अपने हथियार की साफ सफाई ठीक से कर लेता है और यदि उसके हथियार कोई खराबी है तो उसे ठीक करा लेता है! इसलिए जिसके पास हथियार है शस्त्र पूजन जरूर करना चाहिए।
यति मां चेतनानन्द सरस्वती जी ने प्रवचन मे कहा आज के दिन शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है और आज ही के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर राक्षस से लगातार नौ दिन तक युद्ध करके दशहरे के ही दिन उसका वध किया था। शस्त्र पूजन की परंपरा का आयोजन रियासतों में आज भी बहुत धूमधाम के साथ होता है। राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी। छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी। हमारे सभी देवी देवताओं के हाथों में हथियार है और सत्य सनातन संस्कृति मे ही शस्त्र पूजन होता है फिर भी हम सनातनी अपने घरों मे हथियार नहीं रखते हैं जबकि हमारे यहाँ तो पहले से ही प्रत्येक पुरुष व स्त्री को शस्त्र रखने व चलाने की परम्परा थी। लेकिन आज हिन्दूओ ने शस्त्र रखना छोड़ दिया है जो बहुत ही गलत है । सभी हिन्दूओ को अपने सामर्थ्य अनुसार शस्त्र रखना चाहिए! महाभारत मे अज्ञात वास के समय पांडवों ने अपने सभी हथियार शमी के वृक्ष पर छुपाकर रखें थे। इसलिए हमे शमी वृक्ष का संरक्षण व संवर्धन भी करना चाहिए।
तलवार बाजी व लाठी चलाने का उत्तम प्रदर्शन करने वाले युवाओं व समाज मे श्रेष्ठ कार्य करने वालो को सम्मान प्रतीक भेंट कर समानित किया गया! ताकि सभी नागरिक श्रेष्ठ मार्ग पर चलकर अपना व अपने परिवार का नाम रोशन करे और समाज मे नये आदर्श स्थापित करे।
इस अवसर पर आन्नदपुरी महाराज, रामानंद महाराजा खिंदोडा, राणा रामनारायण आर्य, सुनिल शास्त्री, विक्रांत आर्य, सुखवीर भगत जी,उषा चौधरी, सुमन चौधरी, चौधरण अंजली आर्या, नीरज कोशिक जी पर परवीन गुप्ता जी आदि उपस्थित रहें।
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