प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को पुनः वैधानिक मान्यता ।

गाजियाबाद -सविता शर्मा ।

 भारत सरकार एवं आयुष मंत्रालय द्वारा प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को  पुनः वैधानिक मान्यता दी गई भविष्य में निश्चित ही भारतीय चिकित्सा पद्धति को एक नया आयाम मिलेगा ।                                           

गाजियाबाद विश्व आयुर्वेद परिषद के तत्वाधान में एक बैठक का आयोजन कर भारत सरकार एवं आयुष मंत्रालय का आभार प्रकट कर खुशी का इजहार किया विश्व आयुर्वेद परिषद के सदस्य बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि विश्व की प्राचीन चिकित्सा पद्धति मैं से एक आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का गौरवशाली इतिहास रहा है लगभग 5 हजार वर्षों से चिकित्सा कार्य में सननदध यह विज्ञान एवं चिकित्सा शास्त्र को भी आलोकित कर रहा है आयुर्वेद में   शल्य शालाकय दंत चिकित्सा का विशिष्ट ज्ञान प्रायोगिक रूप में आचार्य सुश्रुत के कालखंड में लगभग 35 00वर्ष पूर्व अर्थात 1500 बीसी का माना जाता है पीड़ित मानवता की सेवा सेवा में संपूर्ण आयुर्वेद शास्त्र चिकित्सा की मुख्यधारा में सदियों से रहा है समय के क्रम में भौतिक विज्ञान रसायन विज्ञान तकनीक  औषधि निर्माण विज्ञान तथा अन्य विज्ञान की विधाओं का विकास हुआ जिसका लाभ तत्कालीन अंग्रेजी शासकों द्वारा पौषित एलोपैथि को मिलता रहा फलस्वरूप उसे विकसित एवं पुष्पित पल्लवित होने का पर्याप्त अवसर प्राप्त होता गया लगभग 50 वर्षों से विधि द्वारा स्थापित की सुविधा का शिक्षण  प्रशिक्षण मानक के अनुरूप चल रहा है भारत वर्ष में चार आयुर्वेद विश्वविद्यालय तीन उच्च स्तरीय आयुर्वेद संस्थान सेंट्रल काउंसलिंग फॉर रिसर्च एवं आयुर्वेदिक साइंस तथा अन्य शोध संस्थान इसमें प्रतिभागी हैं इसी क्रम में विगत पोस्टग्रेजुएट रेगुलेशन को पुनभाषित किया जिसमें शल्य एवं शालाकय  शास्त्रों में की जाने वाली सर्जरी को स्पष्ट किया गया आज इंडियन मेडिकल एसोसिएशन नामक प्राइवेट संस्था ने प्रारंभ किया है जो निराधार और   अविवेकपूर्ण है यहां यह भी ज्ञातव्य है कि नियमानुसार प्रत्येक आयुर्वेदिक कॉलेज में एलोपैथिक विधा के सर्जन पैथोलॉजिस्ट रेडियोलॉजिस्ट आबस टेटीशियन एवं गायनोकोलॉजिस्ट द्वारा शिक्षण परीक्षण एवं चिकित्सा कार्य के सहयोग किया जाता है साढे 5 वर्षों के बीएएमएस तथा 3 वर्षों के एमडी एमएस कोर्स में प्रवेश ऑल इंडिया एंट्रेंस टेस्ट द्वारा किया जाता है पूर्ण परीक्षण के पश्चात  चिकित्सा कार्य की अनुमति दी जाती है ऐसी अवस्था में एलोपैथिक चिकित्सक द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सकों के सर्जरी का विरोध करना इनके को दर्शाता है इन को मालूम है कि बड़े-बड़े नर्सिंग होम में आज भी 80 फीसद से ज्यादा आयुर्वेद चिकित्सक ही सेवा दे रहे हैं भारत के लगभग 60 फीसद मरीजों की चिकित्सा व्यवस्था भी आयुष चिकित्सकों द्वारा दी जा रही है इंटरमीडिएट साइंस के पश्चात ही आयुष चिकित्सक में प्रवेश प्राप्त होता है आयुर्वेद कॉलेज के अस्पतालों में पूर्ण रूप से सर्जरी के ओपीडी एवं आईपीडी चल रहे हैं जब सरकार सभी चिकित्सा पद्धतियों के इंटीग्रेशन एवं सहयोग से पूरे भारत की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान चाहती है कतिपय लोग इससे सहमत नहीं प्रतीत होते इनका विरोध स्वार्थ वश एवं एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास है जबकि सभी जानते हैं कि कोई एक विधा या एलोपैथी सबको स्वास्थ्य उपलब्ध कराने में असमर्थ है सरकार के स्वास्थ्य चिंतन में कुछ लोगों का विरोध समझ से परे है क्योंकि मूरछन क्रिया के विशेषज्ञ द्वारा यह पूछा जाता है कि क्या आयुर्वेदिक सर्जन को सर्जरी का अधिकार है इसलिए हमने यह लिखित रूप से स्पष्ट किया है कि आयुर्वेदिक सर्जन क्या कर सकता है सुश्रुत  ने सैकड़ों प्रकार के सर्जिकल प्रोसीजर यंत्र क्षार क्रम अग्नि कर्म राइनोप्लास्टी नासा दंत मुख कर्न रोगों की सर्जरी आदि के बारे में विस्तार से किया है पूरा विश्व युद्ध के फादर आफ सर्जरी मानता है इसका अनुसरण आज भी हो रहा है फिर इसमें प्रश्नचिन्ह कहां है इस अवसर पर आरपी शर्मा एनएस तोमर डीपी नगर संजय कुशवाहा सुभाष शर्मा आदि मौजूद रहे ।

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Milan Tomic

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