वैशाली / बेतिया ( राजेन्द्र कुमार )
परित्राणाय साधुनाम, विनाशाय च दुष्कृतम् को चरितार्थ किया 1971 में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने ,सारी दुनिया को अमन चैन शांति का संदेश देने वाली तथा दुनिया को एहसास कराने वाली ,जब-जब मजलूमों पर अत्याचार होगा ,जब-जब अत्याचार अनाचार बढ़ेगा तब तक भारत में कोई शेरनी दहाड़ेगी और दुनिया के किसी भी कोने में हो रहे अत्याचार अनाचार का विरोध करेगी, आज के दिन जनरल नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ भारत के सैन्य प्रमुख जनरल अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया एवं विश्व की सबसे बड़ी सामरिक जीत के रूप में भारत की जीत को स्वीकार किया। भारत ने कभी भी अनायास किसी देश पर चढ़ाई नहीं की है लेकिन अगर किसी ने चढ़ाई की है तो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया है ,आज के ही दिन सारी दुनिया में अत्याचार अनाचार के ऊपर विजय का झंडा लहरा कर 16 दिसमबर को विजय दिवस के रूप में स्थापित किया ,हम सब अमर शहीदों को याद कर गरबानवित होते हैं। जिन्होंने अपना सर्वस्व देश की आन बान एवं मानवता की शान के लिए न्योछावर किया ,उनके बारे में कहना लाजमी होगा सारा लहू सरीका ,जमीन को पिला दिया , कर्ज था वतन का हमने उसे चुका। दिया हमने उसे चुका दिया हमने उसे चुका दिया। उक्त बातें विजय दिवस के अवसर पर शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए प्रबुद्ध भारती के राष्ट्रीय संयोजक विजय कश्यप ने कही।



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