एक दिन हिंदी को करतें वंदन l
हिंदी बन गयी है आज शर्म,
अग्रेजी बना हमारा प्रथम धर्म l
परायें को भले दो तुम मान,
पर अपनों की मत छीनों शान l
जो हिंदी थी गले का हार,
आज हिंदी बोलने कैंसी हार l
जब जननी मां से बन गयी है मम्मी,
तब से मैंरी हिंदी भी गयी है सहमी l
इतना मत गाओं पराया तुम शुर,
बिंदी वाली हिंदी आज भी है हूर l
हिंद देश में हम जहा आज रहते हैं,
उसी हिंदी के आज आँसू बहते है l
हिंदी आज करती है क्रंदन,
एक दिन हींदी को करतें वंदन l
( लेखिका )
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