गाजियाबाद (सविता शर्मा )
आज आस पास की गौ वंश को लम्पी स्किन डिजीज दर्द में देख उनके लिए हल्दी ,काली मिर्च ओर नमक मिला दवाइ रूपी आटा गुन्थ कर आस पास दिखी सभी गाय ,सांड आदि को ये दवाई रूपी रोटी खिलाई ,आप स्वयं देखिये आस पास के सभी गौ वंश कहीं ना कही से ज़ख्मी ,रोग से ग्रसित हैं ,ओर लंपी त्वचा रोग के दर्द से बेचैन,जिस बीमारी के बाद लगभग गाय का मरना तय हैं जो तेजी से मवेशियों को अपना शिकार बना रहा हैं पर सुध लेने वाला कोई नहीं, सभी से निवेदन हैं इन बेजुबानो की आवाज बन इनकी मदद कीजिये ,इस लंपी त्वचा रोग से अभी तक अनेको गायों की जान जा चुकी हैं, यह रोग उनमे हवा से फैला रहा हैं ज़िसमे उन पर ना कोई दवा काम कर रही हैं ना ही कोई इंजेक्शन से आराम पड़ रहा हैं । लम्पी स्कीन रोग (गांठदार त्वचा रोग) मवेशियों में होने वाला एक संक्रामक रोग है जो पॉक्सविरिडे परिवार के एक वायरस के कारण होता है, जिसे नीथलिंग वायरस भी कहा जाता है। इस रोग के कारण पशुओं की त्वचा पर गांठें होती हैं। संक्रमित मवेशी भी अपने अंगों में सूजन की सूजन विकसित कर सकते हैं और लंगड़ापन प्रदर्शित कर सकते हैं,इसके साथ उनहे तेज बुखार,गले में दर्द ,शरीर में दर्द ,गांठो से रक्त बह जख्म,गांठदार घावों में डर्मिस और एपिडर्मिस शामिल होते हैं, लेकिन यह अंतर्निहित चमड़े के नीचे या यहां तक कि मांसपेशियों तक भी फैल सकता है।ये घाव, जो पूरे शरीर में होते हैं (लेकिन विशेष रूप से सिर, गर्दन, थन, अंडकोश, योनी और पेरिनेम पर), या तो अच्छी तरह से परिचालित हो सकते हैं या वे आपस में जुड़ सकते हैं।
सबसे पहले इस बीमारी को गुजरात, राजस्थान में देखा गया, जहां हजारों की संख्या में पशुओं की मौत हो गई, अभी तक इस बीमारी को गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अंडमान निकोबार,उत्तर प्रदेश सहित समस्त भारत में देखा जा रहा हैं |
विशेषज्ञों की मानें तो बाजार से दूध खरीकर कम से कम 100 डिग्री सेंटीग्रेड तक गरम करना या उबालना चाहिए। दूध में मौजूद घातक बैक्टीरिया और वायरस को खत्म करने के लिये सिर्फ यही नुस्खा काफी है इसलिये लंपी संक्रमित गाय-भैंसों का दूध पीने से पहले सावधानियों पर अमल करना फायदेमंद रहता है |
ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है,एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। समय पर "लंपी-प्रोवैकइंड वैक्सीन" एवं सही समय पर पशुओं का खयाल रखा जाए और दूसरे पशुओं से दूर रखा जाए तो पशुओं को बचाया जा सकता है।इसके साथ उनके बाहरी त्वचा पर पिसी हुई हल्दी ,फिटकरी ,नीम तेल या घी में मिला कर लगाने से भी लाभ होता हैं |
अगर लम्पी स्किन डिजीज से संक्रमित पशु की मौत हो जाती है, तो उसकी बॉडी को सही तरीके से डिस्पोज करना चाहिए ताकि ये बीमारी और ज्यादा न फैले। इसलिए पशु की मौत के बाद उसे जमीन में दफना देना चाहिए। यदि कोई पशु लम्बे समय तक त्वचा रोग से ग्रस्त होने के बाद मर जाता है, तो उसे दूर ले जाकर गड्डे में दबा देना चाहिए।
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