गीत
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बोलो सागर तक नैया की कैसे धार लगे।
संघर्षो में पली जिंदगी कैसे पार लगे।।
संघर्षों के बाद मिले सुख कैसे सबर करूँ।
धीर बिखर ने को आतुर है किसको खबर करूँ।
चिंता की चट्टानों ने रुख़ ऐसा मोड़ दिया।
चिंतन का मग धक्का देकर पीछे छोड़ दिया।।
एक तुम्हारा नाम कन्हैया जीवन में सुखसार लगे।
डगमग डगमग डोली नैया जिससे पार लगे।
बचपन यौवन और बुढ़ापा जीवन चाल कहूं।
आना जाना खोना पाना मन का हाल कहूं।
ये नदियाँ ये संसार हुआ तो सुख- दुख पीर रही।
प्रेम समुदंर पाना खोना ही जागीर रही।।
नाम तुम्हारा राधे मीठा रस की धार लगे।
ख़ारी जमुना जल सा जीवन जिससे पार लगे।।
प्रेम पिपासा निर्मल मन की प्रीत अमर सुखफल।
जैसा जीवन कल था ऐसा ही हो अगला कल।
कोमल मन का भाव कन्हैया को अर्पण कर दूं
तन मन धन का पूर्ण समर्पण का तर्पण कर दूं
सब कुछ उस पर छोड़ दिया जब तब मुख से निकला,
संघर्षो में पली जिंदगी ऐसे पार लगे।।
लेखिका -
संगीता पाठक
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत ।
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