संस्कार युक्त जीवन जीने से मिलती है मुक्ति... कथावाचक रघुवीर दास जी महराज
जो व्यक्ति संस्कार युक्त जीवन जीता है वह जीवन में कभी कष्ट नहीं पा सकता
अंबे माता मंदिर से निकली श्री कृष्ण की बारात सज्जनगढ मामा परिवार बनें साक्षी, ढ़ोल की थाप पर थिरके बाराती मोहकमपुरा पड़ियार परिवार ने बारातियों पर बरसाएं फुल लग्न मंडप में वैदिक मंत्रों से कराईं ब्राह्मणों ने कराई रुकमणी की शादी।कुशलगढ़ / बांसवाड़ा - अरुण जोशी ।
श्रीमद भागवत कथा के छठे दिन श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह का आयोजन हुआ। जिसे धूमधाम से मनाया गया। भागवत कथा के छठे दिन व्यास पीठ पर विराजमान कथावाचक रघुवीरदास जी महाराज ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाये जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। कथा के दौरान महराज ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ। जीव और ब्रह्म के मिलने को ही महारास कहते है। रास का तात्पर्य परमानंद की प्राप्ति है जिसमें दुःख, शोक आदि से सदैव के लिए निवृत्ति मिलती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को रास के माध्यम से सदैव के लिए परमानंद की अनुभूति करवायी।भगवत प्राप्ति के लिए निश्चय और परिश्रम भी जरूरी है ।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया. भगवान श्रीकृष्ण रूक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया. कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया. भागवत कथा के छठे दिन कथा स्थल पर रूक्मणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। श्रीकृष्ण-रूक्मिणी की वरमाला पर जमकर फूलों की बरसात हुई संस्कार युक्त जीवन जीने से मिलती है मुक्ति। कथावाचक ने कहा कि जो व्यक्ति संस्कार युक्त जीवन जीता है वह जीवन में कभी कष्ट नहीं पा सकता।व्यक्ति के दैनिक दिनचर्या के संबंध में उन्होंने कहा कि ब्रह्म मुहूर्त में उठना दैनिक कार्यों से निर्वत होकर यज्ञ करना, तर्पण करना, प्रतिदिन गाय को रोटी देने के बाद स्वयं भोजन करने वाले व्यक्ति पर ईश्वर सदैव प्रसन्न रहता है. इस दौरान कृष्ण-रुक्मिणी विवाह की झांकी सजायी गयी. रुकमणी विवाह के बाद आरती प्रसाद वितरण किया गया।इस अवसर पर श्रीमती रेखा प्रकाश पड़ियार धनेश्वर पड़ियार, शांतिलाल, हेमंत कुमार, भुपतसिंह राठोड़, मगनलाल चौहान, भादरसिह डोड विकास, विजय मोहित उपासना, रणजित नकुम, महेश टेलर, संजय मालवी, कथा में बांसुरी में दिनेशचंद्र दवे तबले पर ओमप्रकाश जेठवा, हारमोनियम पर कमल त्रिवेदी भजन गायक नरेन्द्र आचार्य, महाकाल ढ़ोल पार्टी मोहकमपुरा के जयेश राजपुत,खुशाल टेलर रामचंद्र पंचाल विजय बना, सहित कई श्रद्धालु उपस्थित थे।





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