गीत
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सवेरा हुआ है सवेरा हुआ है
सकल विश्व दिनकर बसेरा हुआ है।।
हरिक पंखुरी खिल उठी है हृदय की,
लिए कामनाएं प्रभू पग निलय की,
पवन मंद झौंकों से आकर झुलाता,
उजाला इसे बाह भरकर उठाता,
उठो लाल कहकर जगाता है उर को,
खिली धूप पसरी दिखाता है उर को,
पिता सम जगाता है खुशबू परी को,
कलेवा खिलाता है खुशबू परी को,
उसी के लिए ही धरा से गगन तक-
तिमिर पूर्ण जग से सकेरा हुआ है।।
सकल विश्व दिनकर बसेरा हुआ है।।१
गगन चूमती पर्वती चोटियों पर,
शिशिर में जमी बर्फ की घाटियों पर,
पयोनिधि पयोधर चमकता दिवाकर।
उदित सात रंगीन गोला प्रभाकर।
रहा बाँट अपने ललित रंग धरती,
मिला अन्न जग को फलित अंग धरती,
सहन और दीवार घर के दरों पर,
महल झौपड़ी वृक्ष पक्षी परों पर,
परोसा हुआ यों उजाला जगत ज्यों-
नदी की लहर पर उकेरा हुआ है।।
सकल विश्व दिनकर बसेरा हुआ है।।२
अजन्मा, अगोचर यही जग नियन्ता,
जिन्हें पूजती साधु-संगति, महन्ता,
मदन-मोहना कृष्ण-केशव मुरारी,
मनोहर जगन्नाथ माधव मुरारी।
जगत पल रहा है इसी के भरोसे,
समय चल रहा है इसी के भरोसे,
सुखों में दुखों में मनुज कृष्ण राधा,
जपन से हटाता तपन घोर बाधा,
निराशा में आशा का दीपक जलाकर-
भरोसा हृदय ने चितेरा हुआ है।
सकल विश्व दिनकर बसेरा हुआ है।।३
लेखिका -
संगीता पाठक
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत ।
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