ख्वाहिशों की मौत - सुनीता जौहरी

 ख्वाहिशों की मौत

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दिल में तूफान मचा हुआ था बहुत सारी कल्पनाएं वह  विचारधाराएं आ-व जा रही थी । बाहर का वातावरण न ज्यादा गर्म था और  न ज्यादा ठंड मगर तन के अंदर ज्वालामुखी सा बना हुआ था । ना जाने कितनी बातें कितनी यादें रिया की जेहन में चिंगारी रूप में जल -बूझ रही थी ।  जब से रिया ने समाचार पत्र के सप्तरंग में छपी क्षमा शर्मा जी की कहानी" इस रिश्ते का नाम" पढ़ी है।

 उन्होंने प्यारऔर परिवार के मध्य कशमकश में फंसी विवाहित महिला द्वारा अंततः लिए गए निर्णय को बखूबी उतारा था जिसमें अंत में नायिका वापस अपनी दुनिया में चली जाती है।

  रिया बहुत असहज महसूस कर रही थी जैसे उन्होंने उसकी कहानी को बखूबी शब्दों में उतार कर रख दिया हो।  कितना मिलता-जुलता था उसकी कहानी और उनकी कहानी का किरदार दिशा  दोनों का ।


 रिया सोच रही थी अपने प्यार में पड़ने की वजह को  'क्या' मैं इतनी कमजोर हूं जो अंत में प्यार में डूब गई' । शादीशुदा औरतों को तो किसी गैर मर्द से प्यार करने का अधिकार ही नहीं  है  । इस बात पर रिया पूर्ण विश्वास करती थी और यह भी वह अच्छी तरह जानती थी कि पति ही सब कुछ होता है।

  परंतु रिया कब चंदन से प्यार करने लगी उसे खुद ही पता नहीं चला उसके दिल और दिमाग में बस चंदन ही चंदन महकता था ।

 पति तो वैसे भी साथ रहकर उसके साथ ना होने के बराबर ही था सिवाय काम के उन दोनों के मध्य बातचीत भी नहीं होती थी । पति रितेश को सिर्फ ताना देने ही आता था। हर बात पर आंख दिखाना खुद को ही ऊपर रखना उसकी बात को अक्षरश: न मानने पर रिया का गाल लाल हो जाना,  यह आम बात हो गई थी । रिया लाख कोशिश करती कि उससे कोई गलती ना हो मगर इतनी कोशिश करने पर भी आखिर कोई न कोई गलती रितेश निकाल ही लेता और उस पर अपनी मर्दानगी दिखाता।

 कल की ही बात है घर में आटा खत्म हो गया था । रिया ने रितेश के ऑफिस जाने के समय  रितेश से कहा था कि,' आटा खत्म हो गया है आप आर्डर कर दो या दुकानदार को बोल देना कि पहुंचा जाएं ।'

 रिया शाम को इंतजार कर रही थी की आटा आएगा तो डिनर बना लूंगी इसी इंतजार में उसने सब्जी बना ली थी और रितेश आटा रितेश व आटा का इंतजार कर रही थी ।

 रितेश ऑफिस से थोड़ी देर से घर आया और हाथ मुंह धोने के बाद बोला कि,' डिनर लगा दो ।'

 रिया ने कहा,' आटा अभी तक आया ही नहीं तो कहां से ...'

इतना कहना था कि रितेश का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया जोर से बोलते हुए ,' क्या ? आटा नहीं है जब मैं ऑफिस से निकलने वाला होता हूं तब तुम मुझे फोन करके क्यों नहीं बोलती हो । सारा दिन घर में पड़े- पड़े सिर्फ खाना- सोना और कुछ तो करना ही नहीं । मुझे देखो ऑफिस का सारा काम भी करता हूं और घर गृहस्थी भी चलाता हूं ,कितनी जिम्मेदारियां मैं उठाता हूं और तुम इतना भी नहीं कर सकती कि घर में कब क्या मंगवाना है क्या खत्म हो गया है यह हिसाब-किताब  रख सको,  किसी काम की नहीं हो तुम । पता नहीं मां- बाप ने तुम्हें कुछ सिखाया क्यों नहीं। 

 रिया चुपचाप सुनती रही अंदर ही अंदर बस अपने स्वाभिमान को कुचलते हुए देखती रही परंतु इतना साहस न जुटा पाई कि कुछ बोल सके ।

सारा दिन घर- गृहस्थी ,बच्चों व पति में ही बिता देती ना खुद का ध्यान रखती ना बनाव श्रृंगार करती । हर वक्त मुरझाई सी रहती थी बस इसी तरह उसकी जिंदगी गुजर रही थी ।

अचानक  जिंदगी ने एक अजीब मोड़ लिया ।एक दिन पत्रिका के बहाने से उसकी मुलाकात चंदन से हो गई जो उसके घर पत्रिका देने आया था  ।चंदन देखने में आकर्षक, गोरा- चिट्टा रंग ,कद सामान्य ,माथे पर टीका, गले में रुद्राक्ष की माला पहने अलग ही व्यक्तित्व वाला पुरुष दिख रहा था दुनिया की बनावटी पन से दूर उसका यही सादापन ही रिया को पहली ही नजर में भा गया । जिससे रिया उसकी ओर आकर्षित होती चली गई । 

यह वह पत्रिका थी जिसे चंदन नि:शुल्क बांट रहा था, जिसमें भारत मां के प्रति उसका अटूट- प्रेम विद्यमान था। हर एक रचना व आलेख में भारत मां से संबंधित बातें ही  लिखा करता था । इसी पत्रिका में चंदन का फोन नंबर भी दिया हुआ था ।

पूरी पत्रिका पढ़ने के बाद रिया ने बहुत हिम्मत करके उसमें दिए गए नंबर पर कॉल कर दिया ।

 उधर से चंदन ने फोन उठाया, ' कैसे हो?

' ठीक हूं ,क्या कर रही हो ?

'कुछ नहीं'

' कुछ नहीं ,क्यों ? कुछ किया करो ।'

'क्या करूं ,घर का काम करके इतना थक जाती हूं कि फिर कुछ करने का मन नहीं करता।'

' वैसे ,तुम्हें क्या-क्या आता है ?

'कुछ खास नहीं '

'अच्छा ,तुम अभी पत्रिका के लिए कुछ लिख सकती हो ?'

'क्या लिखना है! मैंने  कभी कुछ लिखा ही नहीं ।'

' कुछ भी जो समाज से संबंधित हो, भारत से संबंधित हो ।'

'अच्छा ठीक है, कोशिश करूंगी और बताओ' वह तो बस उसकी आवाज में खो जाना चाहती थी

 'तुम बस बोलते जाओ और मैं तुम्हें सुनती रहूं सुनती रहूं बस यही मन कर रहा' रिया ने शर्माते हुए कहा। 'अच्छा ,और क्या-क्या मन कर रहा!'

' बहुत कुछ ,बस जीने का मन कर रहा ।

'तो जिओ, खुल कर जिओ 

सारी वर्जनाओं को तोड़कर जिओ ।'

'अच्छा चलो फोन रखते हैं अभी मुझे काम है' यह कह कर  रिया ने जल्दी से फोन काट दिया ।

मगर चंदन की बातों ने उसे भीतर तक हिला दिया था। वह सोच में पड़ गई थी कि ' क्या सचमुच मैं ऐसा कर सकती हूं ?क्या मैं यह सारे बंधन तोड़ सकती हूं? जो मुझ पर थोपे गए हैं। क्या मैं इन से मुक्त हो सकती हूं? मुक्त होकर भी क्या करूंगी ?क्या मैं अपनी जिंदगी अपने तरीके से जी पाऊंगी? क्या मन में बसी सारी यादों से पार हो पाऊंगी? यह सारी यादें, रिश्ते -नाते क्या तोड़ने से टूट जाएगी? फिर अपने सर को झटक कर कहा छोड़ो कहीं ऐसा भी संभव हो सकता है सब कहने-सुनने की बात है । चंदन ने तो यूं ही कह दिया होगा ।

अगले दिन दोपहर में चंदन का फोन आया,' हेलो रिया क्या कर रही हो ?'

'कुछ नहीं'

' हा! हा! हा! फिर से कुछ नहीं और बताओ कौन-कौन है घर में?

 'मैं, मेरे पति दो बच्चे देवर देवरानी उनके दो बच्चे।'

'संयुक्त परिवार है ! तुम खाली हो मेरा मतलब है अकेली कब होती हो?'

' दोपहर में जब पति आफिस चलें जातें हैं और घर का काम निपटा लेती हूं तब।'

' उसके बाद मुझे फोन कर लिया करो ।'

'ठीक है ' रिया ने कहा ।

इस तरह दोनों रोज फोन से बातें करने लगे कभी -कभी वीडियो चैट भी।

 दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे रिया की आंखों में चंदन को लेकर तरह-तरह के सपने पलने लगे । शायद रिया हर समय चंदन के विषय में ही सोचती रहती।

 यह रिया का पहला प्यार था जिसे वह कभी नहीं भूल सकती ना छोड़ सकती। पहला वाला प्यार इसलिए क्योंकि जवान होते ही उसकी शादी कर दी गई जो पति व ससुराल वाले कहतें वही करती रही और अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले पिसती रही।

 पति ने भी कभी प्यार नहीं किया वह सिर्फ अपनी शारीरिक भूख मिटाने का जरिया समझता था फिर बच्चे हो गए और वह जिम्मेदारियों के बोझ तले पिसती चली गई । जिंदगी बीतती रही और रिया जिम्मेदारियों में खुद को बिताती रही । कभी जीने की इच्छा ही नहीं रही खुद के लिए बस सास -ससुर और पति -बच्चे क्या चाहते हैं उनकी फरमाइशें उनकी इच्छा पूर्ति में ही लगी रहती । इसी को वह अपनी जिंदगी मान बैठी और यही उसकी दुनिया जहां थी।

 परंतु जब से चंदन से मिली वह उड़ने के सपने देखने लगी ।उसे दुनिया को देखने  का, जीनें का मन करने लगा । वह तो अपनी छोटी सी दुनिया को ही पूरा संसार समझती थी परंतु अब उसे पता चला कि दुनिया तो बहुत बड़ी है , रंगीन है, हसीन है, कुछ सपने हैं जो वह इस दुनिया में पूरी कर सकती है । उसे सब कुछ नया -नया सा लगने लगा।

नया एहसास नया भाव नई उमंग नई तरंग वह अब जीना चाहती थी अपने लिए, अपने सपनों के लिए ।अब उसकी आंखों में अपने प्रति सम्मान जगने लगा था वह चाहती थी सब उसका भी सम्मान करें ।वह पत्रिका के लिए लिखने लगी धीरे-धीरे लोग उसे पहचानने लगे परंतु अभी तक वह यह सब कार्य अपने पति के गैर हाजिरी में ही करती ताकि रितेश को पता ना चले कि वह लिखती है एक लेखिका के रूप में । 


और इसी सिलसिले में रिया और चंदन काफी करीब आ गए । अब रिया को चंदन के निजी जीवन के बारे में भी पता लगने लगा रिया को समझ आने लगा कि चंदन तो पहले से ही किसी से प्यार करता है जो उसके साथ उसकी पत्रिका के लिए काम करती है। उसने अपने नाम के साथ सभी जगह उसका नाम लिखा है दोनों के लिखने का तरीका व विचारधारा भी कितना मिलता-जुलता है इस बाबत मैंने उससे पूछा तो वह बात को टाल गया और बोला,' कि तुम दिमाग से पैदल हो ।'

परंतु जब उसके प्यार के किस्से बढ़ने लगे तो रिया को खुद एहसास होने लगा कि वह इन दोनों की बीच आ गई हैं। वजह कुछ भी रही हो मगर अब चंदन को हम दोनो के बीच किसी एक का चुनाव तो करना ही होगा।

मुझे चंदन से बात करनी होगी ।

इधर जिस दिन से रिया ने खुलकर चंदन से निकिता के बारे में बात की है,उसी दिन से वो रिया से कतराने लगा ।

अब रिया से मिलने की जिद भी नहीं करता, बल्कि रिया से बात भी नहीं करना चाहता ।जब भी रिया फोन करती तो कोई न कोई बहाना बना देता।

एक दिन रिया ने फोन पर रोतें हुए कहा ,'कि अब तुम मुझसे बात नहीं करना चाहते , आखिर क्या वजह है।'

वजह कुछ भी नहीं है बस अब मुझे समय नहीं मिलता । मुझे माफ़ कर दो, मैं तुम्हें समय नहीं दे सकता।'

रिया बहुत परेशान रहने लगी ।

 उसने चंदन से साफ-साफ बात करने की ठान ली । और उससे मिलने के लिए समय व स्थान निर्धारित कर लिया ।

रिया और चंदन रेस्टोरेंट में एक-दूसरे के आमने-सामने थे ।

चंदन ने कहा, 'देखों रिया आजकल पत्रिका का काम ज्यादा हो गया है । अंत: मेरे पास ज्यादा समय नहीं है तुम्हें मुझसे क्या बात करनी है अगर तुम जल्दी कर लोगी तो अच्छा होगा वरना मुझे बीच में उठ कर जाना होगा जो तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा ।'

'देखो चंदन, तुम्हें जाना है तो ठीक है मैं भी ज्यादा समय नहीं लूंगी । 'चाय का घूंट पीते हुए रिया ने कहा उसनें उसकी ओर देखा तो चंदन बस किसी तरह वहां से जाना चाह रहा था ऐसा उसके हाव-भाव से प्रतीत हो रहा था ।

'यह बताओ हम शादी कब करेंगे ?

'तुम्हें शादी की इतनी जल्दी क्यों है। वैसे भी मैं शादी नहीं करना चाहता मैं ऐसे ही खुश हूं ।'

'ओहहह'

'यह ओहहह क्या '

'इसलिए कि तुम शायद शादी मुझसे नहीं करना चाहते इसलिए ऐसा बोल रहे हो । मैं अपने पति को तलाक देने को तैयार हूं परंतु उसी परिस्थिति में जब तुम मुझे अपनानें का वादा करो।'

' मैं कोई वादा नहीं कर सकता ।'

'क्यों नहीं कर सकते ?प्यार तो करते हो ना?'

' हां प्यार करता हूं परंतु शादी नहीं  कर सकता और हां प्यार करता हूं इसका मतलब यह नहीं कि तुमसे मैं शादी ही करू । तुम अपने पति रितेश के पास ही रहो बस मुझसे कभी -कभी चोरी- छुपे मिलने आ जाया करो ,जब मैं बुलाऊं तब।'

' तुम मेरे बारे में ऐसा सोचते हो?'आश्चर्य में पड़ते हुए रिया ने कहा । फिर खुद को संयत करके बोली,' यह बताओ उस निकिता से तुम्हारा क्या संबंध है?'

' छोड़ो उसे ,अब मैं चलता हूं ।'

'नहीं ,रुको पहले बताओं फिर चले जाना ।' रिया की आवाज में तल्खी थी ।

आसपास में बैठे लोग रिया को अचानक से देखने लगे।लोग देख रहे हैं यह देखकर रिया थोड़ी शांत हुई। आवाज़ धीमी करके बोली ,'बस  यही एक सवाल का जवाब दो और फिर चले जाना।'

' बोलो ,जल्दी बोलो ' खुद को व्यस्त दिखाते हुए कहा ।

' जिस तरह तुमनें अपने नाम के साथ निकिता का नाम लगा रखा है  और जिस प्यार से उसके साथ बात करते हो , साफ-साफ समझ आता है कि तुम उससे बेहद प्यार करते हो।'

फिर भी क्या तुम मेरा नाम अपने नाम के साथ नहीं जोड़ सकते ? बोलो '

'नहीं ,मैं ऐसा नहीं कर सकता ,तुम उसकी बराबरी करने की सोचों भी मत।'

'ओहहह ,मुझे तुम्हारा उत्तर मिल गया एक गहरी लम्बी सांस लेते हुए रिया ने आगे कहा ,और अब तुम भी मेरा फैसला सुनते जाओ अब आज से, अभी से हम दोनों एक-दूसरे  के लिए अजनबी होते हैं । 

रही बात पत्रिका की तो उसका जितना काम बचा है उसको करने के बाद हम दोनों के रास्ते अलग ।'

'अच्छा होगा, मुझे शांति मिलेगी ।'

चंदन के कहे गए अंतिम वाक्य सुनकर  रिया को जैसे काटो तो खून नहीं चंदन कब का जा चुका था परंतु रिया बुत बनी वहीं बैठी रही।

 चंदन के मुकर जाने से रिया बहुत आहत हुई थी । जैसे वो आसमान से धरती पर आ गिरी हो उसके सारे सपने चूर-चूर हो गए वो बिखर सी  गई ।

 कितना अरमान सजाया था फिर से जी उठने की एक चाह मन में जगी थी । परंतु जो चाह जो उम्मीद जो सपने देखे थे ,वह सब चकनाचूर हो गए और सच भी ऐसा कि उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था' क्या सचमुच में इतनी पागल हो गई थी? क्या  चंदन ऐसा निकलेगा? क्या सच में मेरे पास दिमाग नहीं है? आखिर मैंने सिर्फ दिल से क्यों सोचा? एक बार दिमाग से भी काम ले लिया होता  कि कोई सच्चा प्यार नहीं करता सब मतलब के होते हैं । 

 चंदन को शायद मुझसे कभी प्यार था ही नहीं ,वो तो हमेशा से ही निकिता से प्यार करता था पर उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?

उसने प्यार का ढोंग क्यों रचाया? सोचा होगा शायद रिया मजबूर है उसका फायदा उठा लूं और रिया जाने कैसे उसके प्यार के झांसे में आ गई परंतु रिया की भी गलती नहीं थी आखिर उसके जीवन में प्यार ही ऐसी चीज थी जिसकी कमी हमेशा से उसे अखरती थी और जब चंदन का प्रेमाग्रह पाई तो खुद को रोक ना सकी ।

 रिया अच्छी तरह समझ चुकी थी कि प्यार, मान- सम्मान सब कहने की बातें हैं सब सिर्फ कहते हैं अपने जीवन में उतारते नहीं।

 अपनी आंखों में आंसू लिए  अपनी बेजार जिंदगी में ही लौट जाने का फैसला कर भारी कदमों से घर की ओर चल दी।  फिर से जीने  चली थी फिर से अपने अरमानों, ख्वाहिशों की  मौत ही लेकर जा रही थी।

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लेखिका -

सुनीता जौहरी

वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

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Milan Tomic

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2 comments:

  1. मनोभाव,मनोदशा,परम्परा भावना,और उस पर विजय की बेहतरीन कहानी वाह सुनीता जी बधाई💐💐💐

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