यह पर्व भारत में शरद ऋतु के आरंभ में पड़ने वाला सबसे बड़ा त्यौहार हैं यही कारण है कि अक्टूबर से फरवरी तक भारत में पर्यटकों की अधिकाधिक मात्रा में भीड़ रहती हैं ,पूरे भारत में यह पर्व समान रूप से मनाया जाता हैं । यह पर्व धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलने वाला पांच दिवसीय पर्व है इसे हिन्दू, सिख,जैन, बौद्ध सभी धर्म के लोग समान रूप से मनाते है यहीं कारण है कि दुनिया के अधिकांश देशों में इस दिन हिन्दुओं को सरकारी तौर पर अवकाश मिलता है जिसमें नेपाल, श्रीलंका, भूटान, वर्मा, माॅरिशस , गयाना, थाईलैंड इत्यादि में तो राजकीय अवकाश रहता है तथा आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सारे कामकाज बन्द रहते है। अमेरिका में तो प्रत्येक वर्ष व्हाइट हाउस को रोशनी से सजाने की परम्परा चली आ रही है ।
गौरतलब है कि भारत में भी अन्य त्योहारों की तरह इसे मनाने कि विचारधारा व लोक किवदंतियां अलग –अलग है मसलन कोई इसे लक्ष्मी के आगमन का त्योहार मानता है तो कोई भगवान राम का लंका विजय कर अयोध्या वापस लौटना मानते है तथा कुछ मानते है कि पांडव इसी रोज से अपना बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञात वास पूर्ण करके आए थे ।वहीं दक्षिण भारत के लोग नरकासुर के विजय के रूप में मनाते है ।मान्यतानुसार द्वारिका नरेश श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इस दिन नरकासुर का वध किया था ।वहीं तमिलनाडू प्रांत में मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामनवतार के समय असुर राजा बलि से सब कुछ दान में ले लिया था इसलिए इसे ‘बलि पड़वा' भी कहते हैं लेकिन गुजरात , महाराष्ट्र, राजस्थान के मारवाड़ इलाके में दीपावली से ही उनका नया पंचांग आरंभ होता है इसलिए वे सभी इसे गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते हैं वहीं बंगाल और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में काली पूजा के रूप में मनाते है कहा जाता हैं कि देवी दुर्गा के मायके सिधारने के बीस दिन बाद यह आता है इसलिए काली पूजा के रूप में मनाते हैं वहीं तांत्रिक मानते है कि इसी दिन तंत्र विद्याएं जागृत होती हैं । जैनियों के अनुसार दीपावली के दिन उनके चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को इसी रोज निर्वाण प्राप्त हुआ था ।वहीं आर्य समाज के लोग स्वीकारते है कि इनके संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसी दिन अपना देह त्याग दिया था ।
हालांकि इन तमाम किवदंतियों के बावजूद भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए आरंभ से ही यहां फसलों के लिहाज से सभी त्योहार मनाए जाते है ।किन्तु रोशनी के इस पर्व का जितना धार्मिक महत्त्व है उतना ही अधिक यह उल्लास का पर्व भी हैं समूचे देश में जितनी खरीददारी इस पर्व पर होती है उतना शायद ही किसी पर्व पर होती हो यही कारण है कि व्यापारी इसे त्योहारी सीजन कहते है जो अश्विनी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा यानी गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस तक चलता है इस पर से सभी शुभ मुहूर्त आरंभ हो जाते है। यही अनेक कारण है कि दीपोत्सव पर्व लोगों के जीवन में विशेष महत्व रखता है । उम्मीद है कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी प्रत्येक भारतवासियों के जीवन में नई रोशनी का पथ अग्रसर होगा ।।
लेखिका -
डॉ रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ।
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